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अंश : 123 वाँ
राम मंदिर की प्रथम वर्षगांठ: संघर्ष, समर्पण और श्रद्धा की कहानी
श्री रामचंद्रं शरणं प्रपद्ये,
धर्मस्य मूलं जगतां विभुं तम्।
न्यायस्य धाता सुखदः प्रजानां,
रामं नमामि हृदि सन्निविष्टम्॥
भारत के इतिहास में 22 तारीख़ का दिन एक ऐसा स्वर्णिम अध्याय है जो हर भारतीय के दिलों में सदैव अमिट रहेगा। पिछले वर्ष इस दिन अयोध्या में प्रभु श्री राम के भव्य मंदिर की स्थापना हुई थी। यह सिर्फ़ एक मंदिर नहीं है बल्कि यह 500 वर्षों के संघर्ष, लाखों कारसेवकों के बलिदान और करोड़ों रामभक्तों की अटूट श्रद्धा का प्रतीक है। माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में हमने अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण के स्वप्न को साकार रूप प्रदान किया और यह हमारे लिए अत्यंत गर्व की बात है। आज हम इस ऐतिहासिक घटना की प्रथम वर्षगांठ मना रहे हैं।
राम मंदिर निर्माण की कहानी भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक है। यह संघर्ष केवल एक मंदिर के लिए नहीं था बल्कि यह हमारी संस्कृति, आस्था और पहचान की पुनर्स्थापना का संघर्ष था। न्यायालय में लंबी लड़ाई, असंख्य विचारधाराओं का टकराव और अंततः एक ऐतिहासिक निर्णय—यह सब दर्शाता है कि भारत अपनी विविधता में एकता का सजीव उदाहरण है।
सर्वोच्च न्यायालय ने सभी पक्षों की भावनाओं का सम्मान करते हुए जो ऐतिहासिक निर्णय दिया, वह भारतीय न्याय प्रणाली की निष्पक्षता और गरिमा का परिचायक है। इस निर्णय ने यह सुनिश्चित किया कि राम मंदिर का निर्माण देश के सभी समुदायों के बीच सद्भाव और सम्मान बनाए रखते हुए हो।
राम मंदिर का निर्माण करसेवकों के त्याग और बलिदान का परिणाम है। यह मंदिर उन लाखों लोगों की श्रद्धा का साकार रूप है जिन्होंने अपनी आस्था और रामभक्ति के लिए अपनी जान तक न्योछावर कर दी। बजरंग बली की प्रेरणा और प्रभु श्री राम की कृपा से आज अयोध्या में यह मंदिर खड़ा है।
इस पवित्र भूमि पर जब हम कदम रखते हैं तो हर कण में उस ऊर्जा का अनुभव होता है जो करसेवकों के असीम त्याग और बलिदान से उत्पन्न हुई है। यह मंदिर केवल ईंट और पत्थरों से बना ढांचा नहीं है बल्कि यह उन करोड़ों रामभक्तों की भावनाओं का मूर्त रूप है जिन्होंने इस कार्य में तन, मन और धन से सहयोग दिया।
राम मंदिर का निर्माण भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक है। यह मंदिर केवल धार्मिक स्थल नहीं है बल्कि यह भारत की धरोहर, परंपरा और गौरव का केंद्र है। यह उन मूल्यों का प्रतीक है जो रामायण के आदर्शों के माध्यम से हमारे जीवन में समाहित हैं—मर्यादा, धर्म और सेवा।
आज राम मंदिर न केवल अयोध्या बल्कि पूरे भारत का गौरव है। यह लाखों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है। हर दिन हजारों लोग इस पवित्र स्थल पर दर्शन के लिए आते हैं और प्रभु श्री राम की कृपा प्राप्त करते हैं। भविष्य में यह स्थान विश्वभर के श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र बनेगा।
राम मंदिर निर्माण में हर भारतीय का सहयोग शामिल है। चाहे वह आर्थिक दान हो, श्रमदान हो या फिर केवल अपनी श्रद्धा…हर छोटे-बड़े योगदान ने इस भव्य मंदिर के निर्माण में अपनी भूमिका निभाई है।
हम गर्व से कह सकते हैं कि हमें भी इस ऐतिहासिक कार्य में अपना छोटा-सा सहयोग देने का सौभाग्य मिला। यह सहयोग न केवल हमारी श्रद्धा का प्रतीक है बल्कि यह इस बात का भी प्रमाण है कि जब पूरा देश एक लक्ष्य के लिए एकजुट होता है, तो कोई भी सपना असंभव नहीं होता।
राम मंदिर न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के लिए एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर बनने जा रहा है। अयोध्या अब केवल एक नगर नहीं बल्कि रामराज्य के आदर्शों का प्रतीक है। आने वाले वर्षों में यह स्थल न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र होगा बल्कि सांस्कृतिक पर्यटन का भी प्रमुख आकर्षण बनेगा।
राम मंदिर की प्रथम वर्षगांठ केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं है बल्कि यह हमारी आस्था, हमारे संघर्ष और हमारे गौरव की गाथा है। यह हमें याद दिलाता है कि जब हम सब मिलकर काम करते हैं तो हम असंभव को भी संभव बना सकते हैं।
आज जब हम इस ऐतिहासिक मंदिर के दर्शन करते हैं, तो हमें गर्व होता है कि हम उस युग का हिस्सा हैं जिसने राम मंदिर को साकार होते देखा। यह गर्व हमें प्रेरित करता है कि हम अपने धर्म, संस्कृति और परंपरा को संजोकर रखें और आने वाली पीढ़ियों को भी इसका महत्व सिखाएं।
– क्या आप राम मंदिर की प्रथम वर्षगांठ के इस ऐतिहासिक महत्व को बच्चों और युवाओं को समझाने के लिए स्कूलों और कॉलेजों में विशेष कार्यक्रमों की आवश्यकता महसूस करते हैं?
– आपके विचार में राम मंदिर को भारत के सांस्कृतिक पर्यटन का केंद्र बनाने के लिए और क्या प्रयास किए जा सकते हैं?
जय हिंद
हृदय की कलम से
आपका
धनंजय सिंह खींवसर