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साप्ताहिक सूक्ष्म ब्लॉग | संवाद से परिवर्तन का प्रयास
अंश : 110 वाँ
विजयदशमी शस्त्र पूजन: एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत
“शस्त्रेण रक्षिते राष्ट्रे, शास्त्र चिंता प्रवर्तते।”
‘शस्त्र पूजन’ की सदियों पुरानी परंपरा हमारी सांस्कृतिक भव्यता को चिह्नित और प्रदर्शित करती है।
बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माने जाने वाला विजयदशमी का पर्व शौर्य एवं वीरता का भी परिचायक है। विजयदशमी के पर्व पर रावण दहन की परंपरा का तो निर्वहन होता ही है, लेकिन इस दिन शस्त्र पूजन की भी ऐतिहासिक परंपरा रही है। प्राचीनकाल से चली आ रही यह परंपरा आज भी कायम है।
असत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक के रूप में मनाए जाने वाले दशहरा पर्व से पहले हम 9 दिन तक भक्ति के साथ शक्ति की आराधना करते हैं। शक्तिरूपा मां की पूजा अर्चना कर उनका मानवता के शत्रुओं के नाश के लिए आह्वान करते हैं और दशमी के दिन रावण का दहन करके यह पर्व पूर्ण होता है। इसी दिन भारत वर्ष में प्राचीन काल से ही परम्परागत शस्त्र, शास्त्र और शक्ति का पूजन किया जाता रहा है। बीच के कालखंड में हमने शस्त्र पूजन के महत्व को नहीं पहचाना लेकिन जब से देश में प्रधानमन्त्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी है तब से एक बार फिर हम हमारी समृद्ध एवं गौरवशाली परंपरा का निर्वहन कर रहे है। आज देश के रक्षामंत्री श्री राजनाथ सिंह जी ने भारत की इस प्राचीन परम्परा के महत्व को न केवल पहचाना और सम्मान दिया बल्कि वे उसकी अनुपालना भी कर रहे हैं। यह आत्मनिर्भर और शक्तिशाली भारत की एक झांकी प्रस्तुत करने के साथ ही मन में विश्वास जगाता है।
दशहरे के दिन शस्त्र पूजन करने के पीछे अलग-अलग कारण एवं परंपराएं है। प्राचीन समय में जब राजा-महाराजा युद्ध के लिए जाते थे तो विजय प्राप्ति के लिए शस्त्रों की पूजा करते थे। मान्यता थी कि विजयदशमी के दिन जो भी युद्ध शुरू होता है, उसमें जीत निश्चित होती है।
विजयदशमी पर शस्त्र पूजन के पीछे एक मान्यता यह भी है कि दशहरे के दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था और भगवान श्री राम ने रावण का वध कर माता सीता को रावण की कैद से मुक्त किया था। यह दोनों ही कथाएँ बुराई पर अच्छाई की विजय को चिन्हित करती है।
हमें आज भी याद हैं कि करीब 5 वर्ष पहले विजयदशमी के दिन ही देश के रक्षामंत्री वायुसेना के लड़ाकू पायलटों की टीम के साथ राफेल विमानों की पहली खेप लेने के लिए फ्रांस के बॉर्डेक्स गए थे। तब विजयादशमी के दिन 8 अक्टूबर को उन्होंने विदेशी धरती पर भी भारतीय परम्परा का पालन करते हुए पहले राफेल युद्धक विमान को प्राप्त कर उसका पूजन किया था और उस पर स्वास्तिक भी अंकित किया था। भारतीय परम्परा को न जानने वाली और जानकर भी न मानने वाली सोच के लोगों ने तब उसका परिहास किया था, निंदा की थी। वस्तुतः प्राचीन काल से ही भारत में शक्ति की आराधना सात्विक दैवी शक्तियों के संरक्षण और तामसिक आसुरी शक्तियों के नाश के लिए की जाती रही है।
हमारी यह परंपरा शास्त्रों के साथ शस्त्र पूजन और विधिवत शक्ति आराधना को समर्पित है। वस्तुत: मां भगवती की आराधना के नौ दिन और इन नौ दिनों में नित्य प्रति शास्त्रों का पठन, मां भगवती के पूजन के साथ ही उनके हाथों में विराजमान विविध शस्त्रों का पूजन सनातनी हिन्दू विधि-विधान से करते हैं और इसके पश्चात अंतिम दसवें दिन दशहरे पर अस्त्र-शस्त्रों का व्यापक स्तर पर सामूहिक पूजन करने की परंपरा हमारे समाज में सदियों से चली आ रही है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारतीय परम्पराओं और दर्शन का सबसे बड़ा वाहक है। संघ संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने सन 1925 में विजय दशमी वाले दिन ही समाज, संगठन और देश को स्वतंत्र कराने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी। उस समय संघ की प्रतिज्ञा लेने वाला प्रत्येक स्वयंसेवक देश को स्वतंत्र कराने का संकल्प लेता था। अपनी स्थापना के दिन से ही शस्त्र पूजन की यह परम्परा संघ के स्वयंसेवक बड़े गर्व से निभाते आ रहे हैं। संघ की शाखा में जाने वाला प्रत्येक स्वयंसेवक अपनी परंपरा में शस्त्र, शास्त्र और शक्तिपूजन के सही मायनों को समझता है।
आइए , एक बार फिर हम अपनी जड़ों की ओर लौटें और हमारी समृद्ध, गौरवशाली सांस्कृतिक विरासत को संजोकर रखें ताकि आने वाली पीढ़ी हमारे वीर पुरुषों की गाथाओं से प्रेरणा ले सके।
जय हिंद
– क्या आप मानते हैं कि विजयदशमी पर शास्त्र और शस्त्र पूजन ज्ञान और शौर्य की अनुपम गाथा की याद दिलाते हैं और हमें प्रेरित करते हैं?
– शास्त्र और शस्त्र पूजन का विरोध करने वाले लोगों की कुत्सित मानसिकता के बारे में आपका क्या विचार हैं?
हृदय की कलम से !
आपका
– धनंजय सिंह खींवसर