रविवार का सदुपयोग– अंश - 103 वां


रविवार का सदुपयोग 
 
साप्ताहिक सूक्ष्म ब्लॉग | संवाद से परिवर्तन का प्रयास
 
अंश – 103 वां 
 
रक्षाबंधन 
रक्षा का संकल्प
प्यार का बंधन
 
सभी देशवासियों को भाई-बहन के स्नेह के प्रतीक रक्षाबंधन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं…
 
श्रावण मास पूर्ण हो रहा है और पूरा देश भाई और बहन के स्नेह के प्रतीक रक्षाबंधन के त्योहार को मनाने के लिए उत्साहित है। मैं आप सभी को रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं देना चाहता हूं, साथ ही यह आग्रह करना चाहता हूं कि इस रक्षाबंधन के अवसर पर हम संकल्प लें कि देश की हर बहन बेटी को न केवल पूरा सम्मान देंगे,बल्कि उनकी सुरक्षा के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। 
 
प्रतिवर्ष श्रावण पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है। यूं तो भारत में भाई-बहनों के बीच प्रेम और कर्तव्य की भूमिका किसी एक दिन की मोहताज नहीं है पर रक्षाबंधन के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व की वजह से ही यह दिन काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। रक्षाबंधन पर बहनें भाइयों की दाहिनी कलाई में राखी बांधती हैं, उनका तिलक करती हैं और उनसे अपनी रक्षा का वचन लेती हैं। हालांकि रक्षाबंधन की व्यापकता इससे भी कहीं ज्यादा है। राखी बांधना सिर्फ भाई-बहन के बीच का कार्यकलाप नहीं रह गया है। राखी देश की रक्षा, पर्यावरण की रक्षा, हितों की रक्षा आदि के लिए भी बांधी जाने लगी है।
 
रक्षाबंधन के त्योहार को लेकर कई कथाएं प्रचलित है। हिंदू पुराण कथाओं में ही वामनावतार नामक पौराणिक कथा में रक्षाबंधन का प्रसंग मिलता है। राजा बलि ने यज्ञ संपन्न कर स्वर्ग पर अधिकार का प्रयत्‍‌न किया तो देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। विष्णु जी वामन ब्राह्मण बनकर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए। गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। वामन भगवान ने तीन पग में आकाश-पाताल और धरती नापकर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। उसने अपनी भक्ति के बल पर विष्णु जी से हर समय अपने सामने रहने का वचन ले लिया। लक्ष्मी जी इससे चिंतित हो गई। नारद जी की सलाह पर लक्ष्मी जी बलि के पास गईं और रक्षासूत्र बांधकर उसे अपना भाई बना लिया। बदले में वे विष्णु जी को अपने साथ ले आईं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। 
 
महाभारत में भी रक्षाबंधन के पर्व का उल्लेख है। जब युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूं तब कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिए राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी। शिशुपाल का वध करते समय कृष्ण की तर्जनी में चोट आ गई तो द्रौपदी ने लहू रोकने के लिए अपनी साड़ी फाड़कर चीर उनकी उंगली पर बांध दी थी। यह भी श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। कृष्ण ने चीरहरण के समय उनकी लाज बचाकर यह कर्ज चुकाया था। रक्षा बंधन के पर्व में परस्पर एक-दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना निहित है।
 
आज यह त्योहार हमारी संस्कृति की पहचान है और हर भारतवासी को इस त्योहार पर गर्व है। लेकिन आज रक्षा बंधन के इस पर्व पर्व हमे कुछ नया संकल्प लेने की आवश्यकता है। आज जब हम रक्षाबंधन पर्व को एक नए रुप में मनाने की बात करते है तो हमें परिवार, समाज, देश  और पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता है। आज हम यह संकल्प लें कि राखी के दिन एक पौधा लगाकर एक स्नेह की डोर बांधेंगे और उस पौधे की रक्षा का जिम्मेदारी भी लेंगे। वृक्षों को देवता मानकर पूजन करने मे मानव जाति का  उद्धार होता है जो प्रकृति आदिकाल से हमें निस्वार्थ भाव से केवल देती ही आ रही है उसकी रक्षा के लिये भी हमें इस दिन कुछ करना चाहिए। पेड -पौधे बिना किसी भेदभाव के सभी प्रकार के वातावरण में स्वयं को अनुकुल रखते हुए, मनुष्य जाति को जीवन देते है। इस धरा को बचाने के लिये राखी के दिन वृक्षों की रक्षा का संकल्प लेना बेहद आवश्यक हो गया है। 
 
देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने भी देश के हर वर्ग को पर्यावरण संरक्षण से जोड़ने के उद्देश्य से ” एक पेड़ मां के नाम ” अभियान की शुरुआत की है और उसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आए हैं। आज पूरे देश में पौधारोपण को लेकर आमजन में जबरदस्त उत्साह दिख रहा है। इस वर्ष न केवल पौधे लगाए जा रहे हैं बल्कि उनके संरक्षण की भी जिम्मेदारी ली जा रही है। प्रधानमंत्री जी ने इस अभियान को “मां” के नाम से जोड़कर आमजन और पौधे के बीच एक भावात्मक रिश्ता बना दिया है और निश्चित रूप से आने वाले वर्षों में हम देखेंगे कि ये सभी पौधे वृक्ष बनकर देश के पर्यावरण संतुलन को बनाने में अपनी अहम भूमिका निभाएंगे। 
 
हमारे देश में हमेशा नारियों को देवी शक्ति की तरह पूजने की परंपरा रही है और कहा गया है- 
 
 “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। 
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।।”
 
अर्थात “जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं और जहाँ स्त्रियों की पूजा नही होती, उनका सम्मान नही होता वहाँ किए गए समस्त अच्छे कर्म भी निष्फल हो जाते हैं । लेकिन जिस तरह से महिलाओं पर अत्याचार दुष्कर्म, गैंग रेप, लूट और हत्या जैसी घटनाएं घट रही हैं, उसने हमें एक बार फिर सोचने को मजबूर कर दिया है। पाश्चात्य संस्कृति की चकाचौंध में हम अपने संस्कारों से दूर होते जा रहे हैं। मोबाइल, इंटरनेट की दुनिया में कोई देश के युवा दिगभ्रमित हो रहे हैं और यही कारण है कि इस तरह के जघन्य अपराध घटित हो रहे हैं। केवल कानून और पुलिस इस तरह के घृणित अपराधों पर अंकुश नहीं लगा सकती है,  इस तरह के अपराधों की रोकथाम के लिए समाज के हर वर्ग को आगे आने की आवश्यकता है। हम बच्चों को किस तरह की शिक्षा दे रहे हैं, हमारे बच्चे किस दिशा में जा रहे हैं,  इस पर नजर रखने की आवश्यकता है।  जब तक हम बच्चों में बचपन से ही नारियों के सम्मान का संस्कार नहीं देंगे तब तक इस तरह की घटनाओं को पूरी तरह से रोक पाना संभव नहीं होगा।
 
आइए, रक्षाबंधन के इस पुनीत अवसर पर हम यह संकल्प लें कि हम परिवार की समाज की हर नारी को बहन, बेटी और मां के समान आदर और सत्कार देंगे और बहन बेटियों के साथ गलत हरकत करने वालों को सजा दिलाने में कानून की मदद करेंगे। 
 
– क्या आप यह मानते हैं कि आज रक्षाबंधन को सिर्फ भाई बहन के स्नेह के अर्थ में ही नहीं बल्कि अत्यंत व्यापक अर्थों में परिभाषित करने की आवश्यकता है?
 
– नारी सम्मान और पर्यावरण संरक्षण के पुनीत संकल्प के लिए क्या आप सब तैयार हैं?
 
जय हिंद
 
हृदय की कलम से।
 
आपका 
धनंजय सिंह खींवसर