रविवार का सदुपयोग– अंश- सतासीवाँ

 
रविवार का सदुपयोग 
 
साप्ताहिक सूक्ष्म ब्लॉग | संवाद से परिवर्तन का प्रयास
 
अंश- सतासीवाँ
 
राजस्थान का जनादेश तय हो चुका है।
 
उसे स्वीकार कर हम सभी एकजुट होकर “विकसित राष्ट्र” में बने सहभागी..!
 
सामूहिक सहभागिता व सामंजस्य से होगा विकसित राष्ट्र का संकल्प साकार 
 
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के चुनावी अनुष्ठान के अंतर्गत प्रदेश में मतदान की प्रक्रिया संपन्न हो चुकी है और आम जनता ने अपना जनादेश दे दिया है। प्रत्येक पार्टी के प्रत्याशियों का भाग्य वोटिंग मशीनों में बंद हो चुका है। अब हम सभी को मिलकर एक बार फिर विकसित राष्ट्र बनाने के विराट संकल्प को पूरा करने की दिशा में सामूहिक रूप से कार्य करने की आवश्यकता है।
 
राजस्थान में इस बार पहले और दूसरे चरण के चुनाव में ही सभी 25 लोकसभा सीटों पर मतदान की प्रक्रिया पूरी हुई है। प्रदेश के मतदाताओं ने उत्साहपूर्वक लोकतंत्र के इस महायज्ञ में अपनी आहुतियां दी हैं और अब देवतुल्य जनता का जनादेश तय हो चुका है। 4 जून को होने वाली मतगणना में जनादेश का परिणाम सबके सामने होगा। 
 
सहभागिता लोकतंत्र की प्राणशक्ति है। जन प्रतिनिधि हों या आमजन मतभेद यदि मनभेद में ना बदलें तो देश के विकास के लिए यह बहुत अच्छा सिद्ध होता है। विचारों और दृष्टिकोण का अलग-अलग होना कोई चुनौती नहीं है, चुनौती यह है कि हम एक दूसरे की वैचारिक विविधता के साथ सामंजस्य कैसे बिठाएँ? यदि हम ऐसा कर लेते हैं तो सही मायने में लोकतंत्र सार्थक होता है।
 
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की सबसे बड़ी खूबसूरती यही है कि सरपंच से लेकर प्रधानमंत्री तक को हर 5 साल बाद जनता की अदालत में आना पड़ता है। उनके द्वारा अपने कार्यकाल के दौरान किए गए कार्यों और जनता से किए गए वादों की जमीनी हकीकत को जनता के समक्ष रखा जाता है और उसके बाद जनता जनार्दन अपना निर्णय सुनाती है। लोकतंत्र में जनता को जनार्दन का दर्जा दिया गया है जिसका तात्पर्य होता है ईश्वर। यानी लोकतंत्र में जनप्रतिनिधियों के भाग्य के निर्धारण में जनता की भूमिका सर्वेसर्वा के रूप में होती है।
 
पहले चरण में प्रदेश की 12 लोकसभा सीटों पर और दूसरे चरण में प्रदेश की शेष 13 सीटों पर मतदान प्रक्रिया संपन्न हुई हालांकि पहले चरण में मतदान प्रतिशत थोड़ा कम रहा लेकिन दूसरे चरण में जिस तरह से प्रदेश के मतदाताओं ने उत्साहपूर्वक भाग लिया, वह हमारी मजबूत लोकतांत्रिक व्यवस्था को दर्शाता है।
 
पिछले करीब तीन महीने से चुनाव प्रचार का सिलसिला चल रहा था। सभी प्रत्याशी अपने-अपने स्तर पर एड़ी चोटी का जोर लगा रहे थे। चुनाव प्रचार के दौरान कई बार जाति धर्म को लेकर विविध प्रकार की टिप्पणियां की जाती हैं तो कई बार व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप का भी दौर चलता है लेकिन चुनाव समाप्त होने के साथ ही इन सभी बातों को यदि भुला दिया जाए तो हम देखेंगे की हमारा प्रदेश और देश एक नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ता नजर आएगा।
 
चुनाव की इस जद्दोजहद के बीच हो सकता है कि कई बार प्रत्याशियों के समर्थकों के बीच किसी न किसी बात को लेकर कहासुनी या हल्का विवाद हुआ हो लेकिन मैं आप सभी से विनम्र आग्रह करूंगा कि चुनाव के दौरान हुई छोटी-मोटी बातों और नोंक झोंक को छोड़कर हम सभी एक बार फिर विकसित राष्ट्र बनाने के संकल्प को पूरा करने की दिशा में कदम बढ़ाएंगे तो निश्चित रूप से 2047 तक हमारा देश विकसित राष्ट्र की श्रेणी में खड़ा होगा।
 
लोकतंत्र में हार और जीत एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। चुनाव में जीत हासिल करने वाले प्रत्याशी के कंधे पर मतदाताओं की उम्मीदों का बोझ होता है और उसे पूरा करने की चुनौती भी होती है। वहीं दूसरी तरफ चुनाव में पराजित होने वाले प्रत्याशी को भी अपनी हार और गलतियों से सीख लेते हुए अपने अगले लक्ष्य को पूरा करने की दिशा में प्रयास करना चाहिए। सकारात्मक दिशा में किया गया उनका यह प्रयास निश्चित रूप से सफल होगा।
 
4 जून को देश की जनता की ओर से दिए गए जनादेश का परिणाम आप सभी के सामने होगा। ऐसे में परिणाम चाहे कुछ भी रहे, हमें ‘राष्ट्र प्रथम’ की भावना के साथ आगे बढ़ने का संकल्प लेने की आवश्यकता है। पिछले 10 वर्षों में जिस तरह से भारत एक मजबूत नेतृत्व वाला देश बनकर उभरा है और पूरा विश्व भारत की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देख रहा है, ऐसे में हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम अपने राष्ट्र को मजबूती प्रदान करते हुए इसे विकसित राष्ट्र की श्रेणी में लाकर खड़ा करें।
 
सब साथ मिलकर चलें तो देश का होगा विकास,
आपसी समझ-बूझ से ही पूरी होगी सबकी आस।
 
1. क्या आप मानते है की सबके सहयोग से भारत “विकसित राष्ट्र” बनेगा।
2. क्या आप मानते है की चुनावी मतभेद पूर्णतया समाप्त कर देने चाहिए।
 
हृदय की कलम से।
 
आपका 
धनंजय सिंह खींवसर