रविवार का सदुपयोग – अंश- बासठवाँ


रविवार का सदुपयोग 

 
साप्ताहिक सूक्ष्म ब्लॉग | संवाद से परिवर्तन का प्रयास 
 
अंश- बासठवाँ
 
लहरों को ख़ामोश देखकर यह मत समझना कि समंदर में रवानी नहीं है I
 
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥”
 
– अर्थात्, सफलता पाने का मूल मंत्र है पूरे सामर्थ्य के साथ प्रयास करना। परिणाम तय करना हमारे बस में नहीं है लेकिन सही प्रयास अंततः सही परिणाम ही देता है। 
 
श्रीमद्भागवत गीता का ये श्लोक मुझे अपने लक्ष्यों के प्रति समर्पित रहने की प्रेरणा देता है। खींवसर के प्रति मेरी प्रतिबद्धता सदैव अटल रहेगी। निरंतर दृढ़ संकल्पों के साथ कोशिश करते रहने वाले एक दिन सफल अवश्य होते हैं।
 
हर व्यक्ति के जीवन में कई तरह की चुनौतियां आती हैं और इन चुनौतियों के सामने यदि वह अपना हौसला तोड़ दे, तो कभी अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच सकता है। लेकिन वही व्यक्ति यदि दुगुने जोश और उत्साह के साथ इन चुनौतियों का सामना करे, तो एक दिन निश्चित रूप से सफलता उसके कदम चूमती है…हो सकता है कि आपने जो लक्ष्य तय किया है, उसे पूरा करने में कुछ समय लग सकता है। लेकिन इसका मतलब यह मतलब कतई नहीं हो सकता है कि आप उस लक्ष्य तक कभी नहीं पहुंच सकते हैं। 
 
हमारा प्रथम लक्ष्य जन्मभूमि खींवसर की सेवा करना रहा है। ऐसा नहीं है कि केवल सत्ता या सरकार ही सेवा का माध्यम बन सकती है। यदि मन में जनता की सेवा करने तथा उनके हर सुख-दुख में भागीदार बनने का दृढ़ लक्ष्य हो तो, यह कार्य सत्ता की भागीदारी के बिना भी किया जा सकता है। हमारा परिवार पीढ़ियों से खींवसर और खींवसरवासियों की सेवा में समर्पित रहा है। जनसेवा का जो संकल्प हमने अपने पूज्य दादाजी से सीखा है, उस संकल्प को निभाने का प्रयास सदैव जारी रहेगा।
 
खींवसर की जनता-जनार्दन की सेवा करने का जो यह जज्बा है, उस जज्बे को कायम रखते हुए हम दुगुने जोश और उत्साह के साथ सेवा कार्य में लगे रहेंगे। खींवसर के सर्वांगीण विकास का जो सपना हम सभी ने साथ मिलकर देखा है, उस सपने को साकार करने की दिशा में हम निरंतर प्रयत्नशील रहेंगे।
 
“जब नाव जल में छोड़ दी, तूफ़ान में ही मोड़ दी।
दे दी चुनौती सिंधु को, धार क्या माँझधार क्या॥”
 
जिस प्रकार एक नाविक नाव को तूफान की तरफ मोड़ देता है और उसके अंजाम की परवाह नहीं करता है कुछ इसी प्रकार हमने खींवसर के सर्वांगीण विकास के स्वप्न को साकार करने के लिए अपने कदम को आगे बढ़ाया है। हमें इस बात का एहसास है कि खींवसर के चहुंमुखी विकास का जो सपना हमने देखा है, उस मंजिल को पाने के लिए अभी हमें कई बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। लेकिन इन सबके बावजूद भी हमारे हौसले और जज्बे में कोई कमी नहीं आई है। मैं आप सबको पूर्ण विश्वास दिलाना चाहता हूं कि भविष्य में हम नई ऊर्जा और दुगुने जोश के साथ इस सपने को हकीकत में अवश्य बदलेंगे।
 
“मेरा जो भी तजुर्बा है ऐ ज़िंदगी, 
मैं तुझे बतला जाऊँगा। 
चाहे जितना करना पड़े संघर्ष, 
मैं कर जाऊँगा।
उम्मीद क्या होती है ज़माने में,
हमसे बेहतर कोई नहीं जानता।
कभी आ मेरी चौखट पे,
ये बात भी तुझे सिखला जाऊँगा।”
 
पिछले एक दशक से मैंने अपने पूर्वजों द्वारा मिले जनसेवा की शिक्षा को आगे बढ़ाते हुए, खींवसर के लोगों के बीच रहकर उनके हर सुख-दु:ख में भागीदारी निभाने का प्रयास किया है। खींवसरवासियों ने जो असीम प्यार, स्नेह और आशीर्वाद मुझे दिया है, उसे शायद शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है। निश्चित रूप से आपका ये असीम स्नेह और आशीर्वाद मुझे नई प्रेरणा और स्पूर्ति प्रदान करता है। सकारात्मक सोच तथा “सबका साथ, सबका विकास” की भावना के साथ आप सभी लोगों के बीच सेवा कार्यों को अनवरत रूप से जारी रखने का विश्वास दिलाता हूं। विश्वास के मजबूत डोर से बंधा हमारा अटूट रिश्ता सदैव कायम रहेगा। 
 
 
हृदय की कलम से ! 
 
आपका 
 
– धनंजय सिंह खींवसर