रविवार का सदुपयोग – अंश-पैंतीसवाँ

 
रविवार का सदुपयोग 
 
साप्ताहिक सूक्ष्म ब्लॉग | संवाद से परिवर्तन का प्रयास
 
अंश-पैंतीसवाँ
 
निरंतर प्रयास और समर्पण सफलता की कुंजी है।
 
” करत अभ्यास के जङमति होत सुजान। 
रसरी आवत जात, सिल पर करत निशान।। “
 
संत कबीरदास का यह दोहा निश्चित रूप से सफल जीवन का मूल मंत्र कहा जा सकता है। जिस प्रकार कुए के मुंडेर पर लगी रस्सी जब बार-बार अंदर और बाहर आती जाती है तो पत्थर पर भी निशान पड़ जाते हैं, उसी तरह यदि लक्ष्य के प्रति समर्पण और निरंतर अभ्यास किया जाए तो सफलता कदम चूमने लगती है।
 
इतिहास में हमें ऐसे कई उदाहरण देखने को मिल जाएंगे जहां लक्ष्य के प्रति समर्पण निष्ठा के साथ सकारात्मक रूप से प्रयास किए गए तो उन्हें सफलता जरूर मिली है। प्रसिद्ध कवि सूर्यकांत त्रिपाठी की एक कविता आप सभी ने सुनी होगी जिसमें वह बताते हैं कि 
 
“नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है। 
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।”  
 
चींटी के उदाहरण के माध्यम से सूर्यकांत निराला ने निश्चित रूप से सफलता मूल मंत्र को बताने का प्रयास किया है। इसी प्रकार इतिहास की एक कहानी भी हमने कई बार सुनी है जिसमें एक राजा युद्ध में हारने के बाद डर के कारण  एक गुफा में छिप जाता है, गुफा की दिवार में राजा को एक मकड़ी दिखाई देती है, जो बार-बार छत में चढ़ने की कोशिश करते है ,पर वह बार-बार नीचे गिर जाती है | राजा देखता है, मकड़ी बार-बार ऊपर चढ़ने के प्रयास कर रही है , लेकिन वह नीचे गिरती है,अंत में मकड़ी छत में पहुंच जाती है। बहुत बार प्रत्यन करने के बाद उसे सफलता मिल जाती है। मकड़ी के प्रयत्न को देखकर राजा को बहुत हिम्मत मिलती है। राजा को समझ आती है कि बार-बार प्रयत्न करने से हमें जीवन में सफलता मिलती है। राजा साहस करता है और फिर युद्ध के लिए तैयार हो जाता है इस तरह अंत में राजा को जीत मिल जाती है।
 
मन की बात निरंतर प्रयास का के सफल उदाहरण है।
 
निरंतर समर्पण का ही नतीजा हैं कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की ओर से शुरू किए गए मन की बात का आज 100 वां संस्करण प्रसारित हो रहा है। निरंतरता के कारण आज मन की बात कार्यक्रम देशवासियों की आवाज बन कर अपनी अलग पहचान बना चुका है और आम जनता से सीधा जुड़ाव का सशक्त माध्यम बना है। वही राजनीति परिदृश्य से अगर देखा जाए तो ऐसे कई राजनेता होंगे जो लगातार सफलता हासिल करते हैं और इसका सबसे मुख्य कारण उनका जनता से सीधा जुड़ाव, काम के प्रति समर्पण और जनहित के जुड़े कार्यों को करवाने के लिए सतत प्रयत्नशील रहना है। 
 
निरंतर समर्पण का मेरा व्यक्तिगत अनुभव
 
सफलता के लिए निरंतर प्रयास और समर्पण का होना आवश्यक है, इस बात का मुझे भी काफी बारीकी से अहसास हुआ है। पिछले एक दशक से मैंने हमेशा प्रयास किया कि मैं क्षेत्रवासियों के हर सुख दु:ख में भागीदार बनूं, उनसे नियमित संपर्क में रहू और आमजन की समस्याओं के निस्तारण के लिए पूरी सकारात्मकता के साथ प्रयास करूं। इसी का परिणाम है कि आज क्षेत्रवासियों से मुझे भरपूर प्यार और स्नेह मिल रहा है और उनका यही प्यार और स्नेह मेरे लिए ऊर्जा पूंज के रूप में कार्य करता है।
 
आजादी के बाद देश के सामने छुआछूत, पर्दा प्रथा जैसी कई कुरीतियां समाज में व्याप्त थी , लेकिन सामाजिक कार्यकर्ताओं और आमजन की ओर से किए गए सतत प्रयासों से आज छुआछूत पर्दा प्रथा जैसी कुरीतियां अतीत बन चुकी है। आज जब हम गांव की चौपाल पर जाते है तो हम व्यक्ति चाहे वह किसी भी वर्ग का हो, एक जाजम पर बैठकर सुख दु:ख को बांटते हैं, साथ बैठकर भोजन करते है और क्षेत्र के विकास की भी चर्चा करते है।
 
1. क्या आप भी मानते हैं कि निरंतर प्रयास और समर्पण से निश्चित रूप से सफलता मिलती है?
 
2. क्या आज की युवा पीढ़ी में निरंतर प्रयास और समर्पण की भावना कम हो रही है ?
 
हृदय की कलम से ! 
 
आपका 
 
– धनंजय सिंह खींवसर