रविवार का सदुपयोग – अंश- पंचानबेवाँ

रविवार का सदुपयोग 
 
साप्ताहिक सूक्ष्म ब्लॉग | संवाद से परिवर्तन का प्रयास
 
अंश- पंचानबेवाँ
 
जातिगत राजनीति : देश के लिए अभिशाप
 
जातिगत राजनीति से परे देश और भारत के हर भूभाग को राष्ट्रनीति की जरूरत है। देश को जातिगत राजनीति का दंश देने वाले सभी नेता देश की तरक्की के दुश्मन समान है। अपने निज स्वार्थ के चक्कर में जनता को जाति के नाम पर बरगलाने वाले नेता स्वयं अपने लोगों के उत्थान में अवरोधक का कार्य करते हैं। ऐसे लोगों को चयनित कर जनता को इनका बहिष्कार करना ज़रूरी है।
 
आज “सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास” के मूलमंत्र के साथ देश एक नई दिशा में आगे बढ़ रहा है। यह नया भारत अब विकसित भारत की ओर अग्रसर है और हमें इस सफर में सहभागी बनना है और इस जातिगत राजनीति के अभिशाप को अपने मतों की ताकत से खत्म करना है।
 
भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश कहा जाता है और इस लोकतांत्रिक देश में लोकतंत्र को बचाने और बनाने में अनेक महापुरुषों ने अपना जीवन समर्पित किया है। हमारे देश की सबसे बड़ी खूबसूरती यही है कि आज भी यहां लोकतंत्र कायम है और जनता ही सर्वोपरि है।
 
हाल ही में संपन्न हुए देश के आम चुनाव में एक बार फिर देश की जनता ने लोकतंत्र में अपना विश्वास व्यक्त करते हुए बढ़ चढ़कर मतदान किया और माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में लगातार तीसरी बार केंद्र में एनडीए की मजबूत सरकार का गठन हुआ। इस बार के लोकसभा चुनाव में एनडीए को लगातार तीसरी बार मिला जनादेश इस बात का स्पष्ट संकेत है कि देश की जनता विकास की राजनीति में विश्वास करती है।
 
विपक्ष ने इस बार के चुनाव में कई तरह की अफवाहें फैलाकर चुनाव परिणाम को प्रभावित करने का प्रयास किया, लेकिन देश की जनता ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के विकसित भारत के संकल्प को पूरा करने की आकांक्षा पर अपनी मोहर लगाई है।
 
लोकतंत्र का अर्थ है “आम जनता का शासन”। जिसे जनता चाहती है उसे सिर आंखों पर बैठाती है और यदि कोई जनता की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरता है तो जनता उसे धरातल पर  ला देती है।  पूर्व में हमने कई बार ऐसे उदाहरण देखें हैं जहां बड़े-बड़े राजनेताओं को जनता ने आईना दिखाया और अर्श से फर्श पर लाकर पटक दिया। ऐसे में हम सभी की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि हम लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए काम करें।
 
आज देश के लोकतंत्र के सामने अगर कोई सबसे बड़ी चुनौती है तो वह है “जातिगत राजनीति”। लोकतांत्रिक प्रक्रिया में जब चुनाव होते हैं तब कई राजनेता अपनी राजनीति चमकाने के लिए जातिगत वोट बैंक को अपनी ढाल बनाते हैं और इस वोट बैंक के सहारे सफलता की सीढ़ियां चढ़ने का प्रयास करते हैं, हो सकता है कि वह कई बार अपने इस ओछे हथकंडे में सफल भी हो जाते होंगे, लेकिन कहा जाता है कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती है और धीरे-धीरे अब आमजन की सोच में भी सकारात्मक परिवर्तन होने लगा है, भले ही इस प्रक्रिया में थोड़ा समय लगा हो लेकिन अब मतदाता अपना भला बुरा सोचकर मतदान करने लगा है जो लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत है।
 
भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र मोदी जी ने देश को विकसित राष्ट्र बनाने के साथ ही आत्मनिर्भर भारत बनाने का संकल्प लिया है। मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया के माध्यम से आज देश विभिन्न क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र मोदी जी कहते हैं कि देश में केवल चार जातियां हैं- महिला, गरीब, किसान और युवा। जब तक इन चारों जातियों को समान रूप से अवसर नहीं मिलेगा और उन्हें समाज की मुख्यधारा से नहीं जोड़ा जाएगा, तब तक देश को विकसित राष्ट्र बनाने का संकल्प पूरा नहीं हो सकता है। इसी को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार अपने निर्णय लेती है।
 
वहीं दूसरी तरफ एक ऐसी विचारधारा है, जिसने हमेशा देश को बांटने का काम किया है। आजादी के बाद धर्म के नाम पर राष्ट्र का बंटवारा किया गया, उसके बाद तुष्टीकरण की राजनीति की गई और अब जातिगत जनगणना के नाम पर देश की एकता को विखंडित करने का काम किया जा रहा है। आज जब देश अनेकता में एकता का संदेश देते हुए एकजुट होकर आगे बढ़ना चाहता है, तब ऐसी विचारधारा के लोग देश को अलग-अलग टुकड़ों में बांटकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकना चाहते हैं।
 
धनबल, बाहुबल और जातिगत राजनीति कर राजनीतिक मुकाम हासिल करने वाले जनप्रतिनिधि कभी भी आम जनता के विकास की सोच नहीं रख सकते हैं। लोकतंत्र में “सबका साथ-सबका विकास- सबका विश्वास ” पहली प्राथमिकता है और जब तक आमजनता अपने जनप्रतिनिधि को इन कसौटियों पर नहीं कसेगी,  तब तक उन राजनेताओं से क्षेत्र के विकास की उम्मीद लगाना बेमानी होगा। 
 
किसी भी क्षेत्र का विकास तभी हो सकता है जब सभी को साथ लेकर विकास की योजनाओं को जमीनी धरातल पर उतारा जाए, इसलिए हम सभी की यह सामूहिक जिम्मेदारी है कि जब भी हमें अवसर मिले हम ऐसे नेता का चुनाव करें जो जाति, धर्म, संप्रदाय जैसी संकीर्ण मानसिकताओं से ऊपर उठकर समग्र विकास की सोच रखता हो। जिस गाड़ी का इंजन मजबूत होगा वह ट्रेन उतनी ही गति से पटरी पर दौड़ेगी, इसलिए यदि हमें अपने क्षेत्र का विकास करना है तो हमें ऐसे ही एक मजबूत इंजन की आवश्यकता है।
 
एक बार फिर आप सभी से यही अपेक्षा है कि हम “वसुधैव कुटुंबकम” की भावनाओं को आत्मसात करते हुए आपसी भाईचारे और प्रेम के रिश्ते की डोर को मजबूत करने का सदैव प्रयत्न करेंगे।
 
1.  क्या आप मानते हैं कि जातिगत राजनीति लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ी चुनौती है ?
 
2 . क्या आप इस बात से सहमत हैं कि जातिगत आधार पर राजनीतिक सफलता पाने वाले जनप्रतिनिधियों की प्राथमिकता क्षेत्र के विकास के बजाय अपने विकास की होती है ?
 
हृदय की कलम से
 
आपका 
धनंजय सिंह खींवसर