रविवार का सदुपयोग– अंश-निन्यानवेवाँ


रविवार का सदुपयोग 
 
साप्ताहिक सूक्ष्म ब्लॉग | संवाद से परिवर्तन का प्रयास
 
अंश-निन्यानवेवाँ
 
|| शुभ गुरु पूर्णिमा ||
 
गुरु ब्रह्मा गुरू विष्णु, गुरू देवो महेश्वरा ।
गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नम:।।
 
गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं।
 
विनयफलं शुश्रूषा गुरुशुश्रूषाफलं श्रुतं ज्ञानम्।
ज्ञानस्य फलं विरतिः विरतिफलं चाश्रवनिरोधः।।
 
‘गुरु’ को हमारी संस्कृति में देवतुल्य माना गया है, जीवन से अज्ञानता के अंधकार को दूर कर ज्ञान से प्रकाशित करने वाले सभी गुरुजनों को नमन।
 
आज गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व है। गुरु के बिना इस जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान ईश्वर और माता पिता से भी ऊपर रखा गया है। गुरु ही मुनुष्य को सफलता की बुलंदियों तक पहुंचाते हैं। जिस प्रकार एक सुनार सोने को तपाकर उसे गहने का आकार देता है, ठीक उसी प्रकार एक गुरु भी अपने शिष्य के जीवन को मूल्यवान बनाता है। उसे सही गलत को परखने का हुनर सिखाता है। कहा जाता है कि एक बच्चे की पहली गुरु मां होती है, जो हमें इस संसार से अवगत कराती हैं। वहीं दूसरे स्थान पर गुरु होते हैं जो हमें ज्ञान व भगवान की प्राप्ति का मार्ग बताते हैं। हमारे धर्म ग्रंथों में गुरु मे गु का अर्थ अन्धकार या अज्ञान और रू का अर्थ प्रकाश (अन्धकार का निरोधक)। अर्थात् अज्ञान को हटाकर प्रकाश (ज्ञान) की ओर ले जाने वाले को गुरु कहा जाता हैं।
 
गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै न मोष। 
गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मिटै न दोष।।
 
गुरु पूर्णिमा, गुरु के प्रति अटूट श्रद्धा, गुरु पूजा और कृतज्ञता का दिन है। मनुष्य जन्म चेतना की ऊंचाइयों को छू लेने के लिए मिला है और यह बिना गुरु के संभव नहीं है। गुरु अपने शिष्य को हर पहलू की शिक्षा देते हैं। समय-समय पर अपनी वाणी से शिष्य की उलझनों को सुलझा देते हैं। शिष्य को भी चाहिए कि एक बार जब गुरु मान लिया, तब गुरु का हाथ न छोड़े।
 
वैसे तो हर दिन गुरु की सेवा करनी चाहिए। लेकिन यह दिन पूर्ण रूप से गुरु को समर्पित होता है। इस दिन का उल्लेख रामायण व महाभारत में भी किया गया है। कहा जाता है कि इस दिन का इतिहास हजारों लाखों वर्ष पुराना है। 3 हजार ई पू. आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के दिन महाभारत के रचयिता वेद व्यास का जन्म हुआ था। कहा जाता है कि इसी दिन वेद व्यास जी ने भागवत पुराण का भी ज्ञान दिया था। यही कारण है कि हर साल आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा मनाया जाता है। इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है।
 
गुरु पूर्णिमा भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व गुरु के प्रति सम्मान और आभार प्रकट करने के लिए मनाया जाता है। ‘गुरु’ शब्द का अर्थ होता है – अज्ञान के अंधकार को दूर करने वाला। गुरु अपने ज्ञान से शिष्य को सही मार्ग पर ले जाते हैं और उनकी उन्नति में सहायक बनते हैं। लोक में सामान्यतः दो तरह के गुरु होते हैं। प्रथम तो शिक्षा गुरु और दूसरे दीक्षा गुरु। शिक्षा गुरु बालक को शिक्षित करते हैं और दीक्षा गुरु शिष्य के अंदर संचित विकारों को निकाल कर उसके जीवन को सत्यपथ की ओर अग्रसित करते हैं। 
 
जब भी गुरु के सामने जाएं, तब धन, कुटुंब, मान-सम्मान या बड़े पद-प्रतिष्ठा वाले बनकर ना जाएं। केवल श्रद्धा भाव से गुरु के प्रति नतमस्तक हो जाएं। जब हम कुछ बनकर गुरु के सामने जाते हैं तब गुरु कृपा से हम चूक जाते हैं। गुरु कोई शरीर नहीं, एक तत्व है जो पूरे ब्रह्मांड में विद्यमान है। कहते हैं ‘हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहिं ठौर,’ अर्थात हरि के रूठने पर तो गुरु की शरण मिल जाती है, लेकिन गुरु के रूठने पर कहीं भी शरण नहीं मिल पाती। गुरु महिमा में कहा गया है – 
 
गुरुर्देवो गुरुर्धर्मो, गुरौ निष्ठा परं तपः।
गुरोः परतरं नास्ति, त्रिवारं कथयामि ते।
 
यानी गुरु ही देव हैं, गुरु ही धर्म हैं, गुरु में निष्ठा ही परम धर्म है। गुरु से अधिक और कुछ नहीं है। भगवान विष्णु का अवतार होने के बाद भी कृष्ण गुरु सांदीपनि से शिक्षा ग्रहण करते हैं, भगवान राम गुरु वशिष्ठ से ज्ञान प्राप्त करते हैं। यही गुरु का महात्म्य है। 
 
– क्या आप भी यह मानते हैं कि सच्चे गुरु की प्राप्ति होने से हम अपने जीवन को सफल एवं सुंदर बना सकते हैं?
 
– क्या आपके जीवन में कोई ऐसा गुरु है जो आपको समय-समय पर मार्गदर्शन देता है एवं जीवन मूल्यों का ज्ञान कराता है?
 
हृदय की कलम से।
 
आपका 
धनंजय सिंह खींवसर