रविवार का सदुपयोग – अंश- नवासीवाँ


रविवार का सदुपयोग 
 
साप्ताहिक सूक्ष्म ब्लॉग | संवाद से परिवर्तन का प्रयास
 
अंश- नवासीवाँ 
 
“मां”
एक शब्द में समाहित पूरा संसार
 
‘मां’ को शब्दों की सीमाओं में बांध पाना असंभव है। वह ममता का लहराता सागर है जिसमें भावनाएं हिलोरे लेती रहती हैं , इसीलिए कहा गया है कि यदि ईश्वर को देखना है तो मां को देख लेना चाहिए। 
 
किसी अज्ञात कवि ने कुछ इस तरह से मां शब्द को परिभाषित किया…..
 
स्याही खत्म हो गयी “माँ” लिखते-लिखते
उसके प्यार की दास्तान इतनी लंबी थी।
-अज्ञात
 
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मई के दूसरे रविवार को “मदर्स डे” के रूप में मनाए जाने की परंपरा रही है इसलिए आज 12 मई को “मदर्स डे” है। आप सभी को मदर्स डे की हार्दिक शुभकामनाएं और समस्त मातृशक्ति को नमन……!  
 
हालांकि मातृ भक्ति व श्रद्धा की सांस्कृतिक विरासत वाले हमारे भारत में “मां” को एक दिन निहित करना संभव नहीं है क्योंकि सदियों से हमने मां को ईश्वर से बड़ा स्थान दिया है और आज भी यह माना जाता है कि माता-पिता के चरणों में ही हम सभी का पूरा संसार समाया है। हम भारतीयों के लिए तो हर दिन मां को समर्पित है।
 
कुछ विद्वान मानते हैं माँ का मतलब मै + आ अर्थात मैं मतलब परमशक्ति और आ का मतलब आत्मा अर्थात माँ, इस तरह माँ ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है जिसके माध्यम से परमेश्वर अपने अंश द्वारा अपनी शक्ति का संचार और विस्तार करता है।
 
सनातन संस्कृति में हमें ऐसे कई उदाहरण देखने को मिलेंगे, जब ईश्वर ने भी सर्वशक्तिमान मां की कोख से इस धरती पर अवतार लिया है। चाहे प्रभु श्री राम हो या भगवान श्री कृष्णा….उन्होंने अपनी बचपन की अठखेलियों से युवा अवस्था एवं तक जिस तरह से अपने पूरे जीवन काल में मां के प्रति आदर प्रेम, श्रद्धा और सम्मान का उदाहरण प्रस्तुत किया है, वह निश्चित रूप से अपने आप में अनुकरणीय उदाहरण है। मशहूर कवि शैलेश लोढ़ा जी ने भी अपनी एक कविता में कहा था कि
 
“हम एक शब्द हैं तो वह पूरी भाषा है,
बस यही “मां” की परिभाषा है…!”
 
“मां” के बिना जीवन की कल्पना करना भी असंभव है, जिस तरह से 9 महीने की असहनीय प्रसव पीड़ा के बाद जब बच्चा इस धरती पर जन्म लेता है तो वह मां के लिए भी पुनर्जन्म के बराबर होता है। अपने जीवन को खतरे में डालकर अपने कोख के लाल को इस दुनिया में लाने की अगर कोई भी हिम्मत कर सकता है तो वह केवल मां है। बचपन में स्वयं गीले बिस्तर पर सोकर अपने बच्चों को सूखा बिस्तर अगर कोई दे सकती है तो वह मां है। अपने हिस्से का निवाला अपने बच्चों को अगर कोई खिला सकता है तो वह मां है, खुद भले ही कितनी ही विपरीत परिस्थितियों में रहे लेकिन अपने बच्चों को हमेशा खुश देखना चाहती है तो वह केवल मां है। कई बार परिस्थितियों की आगे थक हारकर बैठ जाने वाले किसी पुत्र को यदि कोई नई स्फूर्ति दे सकती है तो वह केवल मां है। निश्चित रूप से मां संपूर्ण सृष्टि के जीवन का मूल आधार है और मां के बिना जीवन की कल्पना बेकार है। 
 
मां के प्रति सम्मान एवं आदर प्रदर्शित करने के लिए केवल एक दिन निर्धारित करना संभव नहीं है क्योंकि मां के लिए तो यदि पूरा जीवन भी न्यौछावर करना पड़े तो भी हम मातृ ऋण को नहीं उतार सकते। लेकिन फिर भी यदि एक दिन के जरिए भूला भटका संसार मां को याद करता है तो इसमें कोई बुराई भी नहीं है। आज के इस ब्लॉग के माध्यम से मैंने मां के शब्द को रेखांकित करने का विनम्र प्रयास मात्र किया है हालांकि मैं जानता हूं कि मां के विराट वात्सल्य एवं विशाल हृदय को शब्दों के ढांचे में ढालना नितांत असंभव है।
हम भले ही मन के प्रति अपने सम्मान को शब्दों से पूरी तरह से व्यक्त न कर पाएं लेकिन यह हमारा कर्तव्य है कि हम मां को वह सम्मान जिसकी जिसकी वह हकदार है। मां को कभी उपेक्षित नहीं करें क्योंकि संतान के लिए मां से बढ़कर दुनिया में कोई नहीं हो सकता। यह नि:स्वार्थ रिश्ता ही संपूर्ण सृष्टि का आधार है।
 
मशहूर शायर मुनव्वर राणा की कुछ पंक्तियों के साथ आज के इस ब्लॉग का समापन करना चाहूंगा कि
 
“हमारे कुछ गुनाहों की सज़ा भी साथ चलती है,
हम अब तन्हा नहीं चलते दवा भी साथ चलती है,
अभी ज़िन्दा है मां मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा,
मैं जब घर से निकलता हूं दुआ भी साथ चलती है।।
 
1. क्या आप भी मानते हैं की मां संपूर्ण जीवन का आधार है ?
 
2. क्या आप भी इस बात से सहमत है कि एक जन्म तो क्या 7 जन्म तक मां के ऋण को नहीं उतारा जा सकता है?
 
हृदय की कलम से
 
आपका 
धनंजय सिंह खींवसर