रविवार का सदुपयोग – अंश-तेइसवां

 
रविवार का सदुपयोग 
 
साप्ताहिक सूक्ष्म ब्लॉग | संवाद से परिवर्तन का प्रयास
 
अंश-तेइसवां
 
हमारी संस्कृति हमारी विरासत 
 
हमारे भारतवर्ष की हमेशा समृद्ध सभ्यता और संस्कृति के रूप में अपनी अलग पहचान रही है, न केवल भारतवासी बल्कि सात समुंदर पार रहने वाले विदेशी भी यहां की सभ्यता और संस्कृति को अपनाने के लिए लालायित नजर आते हैं।  जहां एक और हमारी युवा पीढ़ी पाश्चात्य संस्कृति की ओर लगातार अग्रसर हो रही है वहीं दूसरी ओर विदेशी लोग भारत की सभ्यता और संस्कृति को अंगीकार करने हेतु आतुर दिख रहे हैं।
 
किसी ने सही कहा है कि कोई भी पेड़ तब तक हरा-भरा और खड़ा रह सकता है जब तक वह अपनी जड़ों से जुड़ा हुआ हो, यदि पेड़ को जड़ सहित उखाड़ दिया जाए या उनकी जड़ों को खोखला कर दिया जाए तो वह वापस खड़ा नहीं हो सकता है। हमारी सभ्यता और संस्कृति ही हमारी “विरासत” है, जड़ें हैं….और यदि हमारी जड़ें मजबूत नहीं होगी तो निश्चित रूप से आने वाली युवा पीढ़ी संस्कारों की नींव पर खड़ी नहीं हो सकेगी। भारत आने वाला हर सैलानी यहां की संस्कृति और सभ्यता में रच बस जाना चाहता हैं वहीं आज का युवा पाश्चात्य सभ्यता की और आकर्षित हो रहा है। सम्पूर्ण विश्व आज भारत के पहनावे, अपनायत, शालीनता, आवभगत एवं संस्कारों से बहुत प्रभावित है, लेकिन धीरे-धीरे हमारी ही युवा पीढ़ी इन संस्कारों से दूर हो रही है जो अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। 
 
आज हर कोई पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति की ओर अंधी दौड़ लगा रहा है, चाहे वह नववर्ष सेलिब्रेशन की बात हो, वैलेंटाइन डे आदि जैसे आयोजन सभी पाश्चात्य देशों की ओर आकर्षण का दुष्परिणाम है। हम सभी वर्तमान में संक्रमण काल से गुजर रहे हैं, जहां हमारे सामने ही एक ऐसी पीढ़ी लुप्त होने के कगार पर है, जिन्होंने अपना पूरा जीवन यहां की सभ्यता संस्कृति को अपनाते हुए बिताया है, वहीं दूसरी तरफ एक युवा पीढ़ी जो पाश्चात्य संस्कृति में पूरी तरह रच बचने के लिए दहलीज पर खड़ी है। ऐसी स्थिति में हम सभी को अपनी भूमिका को समझना होगा और वर्तमान पीढ़ी को इस बात का एहसास कराना होगा कि भारत की संस्कृति पूरे विश्व में अपनी अमिट छाप रखती है और इसे अपनाने से न केवल व्यक्तित्व में परिवर्तन आता है बल्कि जीवन जीने की शैली भी बदल जाती है।
 
आज की पीढ़ी की जिम्मेदारी है की आगमी पीढ़ी को भारतीय संस्कृति और संस्कार से पोषित करें और हमारी संस्कृति की भव्यता से भावी पीढ़ी को अवगत करवाएं, हमारा लक्ष्य तभी पूर्ण होगा जब भावी पीढ़ी भी गर्व से कहेगी 
 
“हमारी संस्कृति, हमारी विरासत”
 
1. क्या आप भी मानते हैं की वर्तमान युवा पीढ़ी हमारी संस्कारों से दूर हो रही है ?
 
2. क्या पाश्चात्य संस्कृति को अपनाकर हम हमारी जड़ों को खोखला नहीं कर रहे हैं ?
 
हृदय की कलम से ! 
 
आपका 
 
– धनंजय सिंह खींवसर