रविवार का सदुपयोग – अंश-चौहत्तरवाँ


रविवार का सदुपयोग 

 
साप्ताहिक सूक्ष्म ब्लॉग | संवाद से परिवर्तन का प्रयास 
 
अंश-चौहत्तरवाँ
 
पूज्यश्री तनसिंह जी जन्मशताब्दी वर्ष विशेष
 
“अपने तप की ले मशाल मैं ज्योति जगाता आया हूं,
हारे अर्जुन को कर्मयोग का पाठ पढ़ाता आया हूं।”
 
– पूज्य श्री तनसिंह जी
 
आज नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में श्री क्षत्रिय युवक संघ के संस्थापक पूज्य श्री तनसिंह जी की 100वीं जयंती के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय स्तरीय जन्म शताब्दी समारोह का आयोजन हो रहा है, जिसमें देश भर से क्षत्रिय समाज के गणमान्य लोग उपस्थित हो रहे हैं। मेरा भी इस कार्यक्रम में सम्मिलित होना प्रस्तावित था, किन्तु विगत दिनों मेरी पूजनीय नानी सा के देहावसान के कारण मैं कार्यक्रम में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित नहीं हो पाऊंगा। इस कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिए मैं आयोजक टीम तथा क्षत्रिय युवक संघ के समस्त कार्यकर्ताओं को शुभकामनाएं देता हूं। 
 
आज का हमारा ये ब्लॉग श्री क्षत्रिय युवक संघ जैसे अनुशासित संगठन की स्थापना कर समाज को एक नई दिशा प्रदान करने वाले पूज्य श्री तनसिंह जी को समर्पित है। ऐसे महान व विराट व्यक्तित्व के धनी श्रद्धेय तन सिंह जी की जन्म शताब्दी के अवसर पर मैं उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करता हूं। मेरे जैसे लाखों-करोड़ों युवाओं के प्रेरणास्रोत पूज्य श्री तनसिंह जी सदैव हमारे हृदय में अमर रहेंगे।
 
पूज्य श्री तनसिंह जी का जन्म 25 जनवरी 1924 (माघ कृष्ण चतुर्थी संवत 1980) को अपने ननिहाल बैरसियाला (जैसलमेर) में हुआ था। बचपन से ही समाजसेवा के प्रति रूझान एवं प्रखर व्यक्तित्व के चलते बालक तनसिंह हर किसी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेते थे। उस समय शायद ही किसी ने सोचा होगा कि सामान्य सा दिखने वाला यह बालक आगे चलकर क्षत्रिय समाज के लिए एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करेगा। नागपुर से वकालत की शिक्षा पूरी करने के बाद श्री तनसिंह पुनः बाड़मेर वापस आ गए और उन्होंने यहां पर वकालत शुरू कर दी। वर्ष 1949 में उन्होंने बाड़मेर नगर पालिका के प्रथम अध्यक्ष के रूप में अपने राजनैतिक जीवन की शुरूआत की और महज 28 वर्ष की उम्र में साल 1952 के चुनावों में तनसिंह बाड़मेर से राजस्थान की प्रथम विधानसभा के लिए विधायक चुने गए। वे दो बार राजस्थान राज्य की विधानसभा के और दो बार संसद के सदस्य भी रहे। 
 
श्रद्धेय तनसिंह जी के मन में कॉलेज जीवन से ही अपने समाज के लिए कुछ कर दिखाने की प्रबल इच्छा थी। अपनी इस इच्छा को मूर्त रूप देते हुए उन्होंने वर्ष 1944 की दीपावली को एक ऐसा दीपक जलाया, जिसने पूरे क्षत्रिय समाज के भविष्य को प्रकाशमान कर दिया। मात्र 20 वर्ष की आयु में साल 1944 की दीपावली की रात उन्होंने श्री क्षत्रिय युवक संघ नामक महान संगठन की नींव रखी, जो आगे चलकर राजपूत समाज में संस्कार एवं व्यक्तित्व-निर्माण की दिशा में मील का पत्थर साबित हुआ।
 
तनसिंह जी क्षत्रिय समाज की दशा और दिशा को लेकर काफी संवेदनशील थे। समाज की बिगड़ती दिशा को देखकर वे काफी चिंतित हुए और उन्होंने ऐसे लोगों को एकत्रित किया, जो समाज के लिए कुछ करना चाहते थे। उन्होंने क्षत्रिय समाज युवाओं के लिए श्री क्षत्रिय युवा संघ के रूप में एक अनुशासित संगठन की स्थापना की। इस संस्था के माध्यम से समाज के बालक-बालिकाओं में संस्कार निर्माण का कार्य होता है।
 
इस संस्था द्वारा राजपूत समाज में काफी सामाजिक बुराईयों को दूर किया गया। समाज के युवाओं को संस्कारवान बनाने के लिए उन्होंने अपने जीवनकाल में संघ के 192 शिविर आयोजित किये। 23 दिसम्बर 1978 से 1 जनवरी 1979 तक रतनगढ़ में सात दिवसीय प्रशिक्षण शिविर श्रद्धेय तनसिंह जी के जीवनकाल का अंतिम शिविर था। 
 
पूज्य तनसिंह जी एक बेहतरीन लेखक थे। उन्होंने अपने जीवनकाल के दरम्यान लगभग 14 पुस्तकें लिखी, जिनके नाम – राजस्थान रा पिछोला, समाज चरित्र, बदलते दृश्य, होनहार के खेल, साधक की समस्याएं, शिक्षक की समस्याएं, जेल जीवन के संस्मरण, लापरवाह के संस्मरण, पंछी की राम कहानी, एक भिखारी की आत्मकथा, गीता और समाज सेवा, साधना पथ, डायरी और झनकार हैं। उन्होंने राजस्थानी भाषा में भी कई कृतियाँ लिखीं, जिनमें धरती रा थाम्भा कद धसकै, ए जी थांरा टाबर झुर-झुर रोवै म्हारी माय, चालण रो वर दे माँ मार्ग कांटा सूं भरपूर, भूल्या बिसरया भाईडां ने और भायला प्रमुख हैं। उनके द्वारा लिखी गई पुस्तकें आज भी पथ-प्रदर्शक के रुप में हमारा मार्गदर्शन कर रही हैं। इसके अलावा उन्होंने विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में सैकड़ों लेख लिखे। आज भी उनके द्वारा स्थापित पत्रिका ‘संघशक्ति’ प्रकाशित हो रही है।
 
श्री क्षत्रिय युवक संघ जैसी अनूठी संस्था को खड़ा करने वाले पूज्य तनसिंह जी राजनीतिज्ञ के साथ-साथ उत्कृष्ट कोटि के लेखक, कवि, वकील, व्यवसायी, श्रेष्ठ वक्ता, कर्मठ कार्यकर्ता, संगठनकर्ता और विचारक भी थे।
 
करीब दो वर्षो पूर्व श्री क्षत्रिय युवक संघ की स्थापना के 75वें वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष में राजधानी जयपुर में आयोजित हुआ श्री क्षत्रिय युवक संघ का हीरक जयंती समारोह आज भी अनुशासन का एक बेहतरीन उदाहरण है। इस समारोह में सम्मिलित होने के लिए जयपुर में लगभग 5 लाख से अधिक लोग इकट्ठे हुए थे, लेकिन पूरे कार्यक्रम के दौरान क्षत्रिय समाज ने जो अनुशासन बनाए रखा वह वास्तव में हर किसी समाज और संगठन के लिए प्रेरणास्रोत है।
 
आज जब पूरा देश पूज्य श्री तनसिंह जी का जन्म शताब्दी वर्ष मना रहा है, तो हमें इस पुनीत अवसर पर उनके जीवन मूल्यों एवं आदर्शों को आत्मसात करने की आवश्यकता है। श्रद्धेय तनसिंह जी ने समाज के युवाओं को संस्कारित करने के लिए श्री क्षत्रिय युवक संघ जैसे महान संगठन का जो बीजारोपण किया, वह आज एक विशाल वट-वृक्ष का रूप में ले चुका है। आज की युवा पीढ़ी को उनकी जीवनी से प्रेरणा लेनी चाहिए। समाज के युवा यदि उनके जीवन-आदर्श का लेश मात्र भी अपने जीवन में उतार पाएं, तो जीवन सफल हो जाएगा।
 
आईए, आज हम सभी मिलकर श्रद्धेय श्री तनसिंह जी के चरणों में सादर वंदन करते हैं और यह संकल्प लेते हैं कि हम सदैव उनके सिखाए गए जीवन आदर्शों और मूल्यों को आत्मसात करने का प्रयास करेंगे। आज पूज्य तनसिंह जी की जन्म शताब्दी के अवसर पर उनको यही सबसे बड़ी श्रद्धांजलि होगी।
 
हृदय की कलम से ! 
 
आपका 
 
– धनंजय सिंह खींवसर