रविवार का सदुपयोग – अंश-चौपनवाँ


रविवार का सदुपयोग 

 
साप्ताहिक सूक्ष्म ब्लॉग | संवाद से परिवर्तन का प्रयास
 
अंश-चौपनवाँ
 
चंद्रमा के बाद अब सूर्य पर भारत का सूर्योदय
 
” देश की असली उड़ान अभी बाकी है,
हमारे इरादों का इम्तिहान अभी बाकी है,
अभी तो नापी है सिर्फ मुट्ठी भर जमीन,
अभी तो नापने के लिए सारा आसमान बाकी है.”
 
जी हां, कुछ ऐसे ही संकल्प के साथ देश के वैज्ञानिकों ने चंद्रयान- 3 की सफलता के बाद अब सूर्य मिशन की सफल लॉन्चिंग कर पूरी दुनिया को भारत के महाशक्ति होने का एहसास करवा दिया है। भारतीय स्पेस एजेंसी ISRO ने एक बार फिर कीर्तिमान रचा है। जिनके बारे में दुनिया भर के वैज्ञानिक और स्पेस एजेंसियां अभी तक सिर्फ विचार ही कर रही हैं , वहीं भारतीय वैज्ञानिकों ने वो कर दिखाया है। चंद्रमा के साउथ पोल पर पहली बार तिरंगा फहराने के बाद अब भारत सूर्य मिशन के जरिए सूर्य पर अपनी पकड़ को मजबूत करेगा।
 
यह भारत का पहला अंतरिक्ष अभियान है जो सूर्य के अध्ययन के लिए भेजा गया है। इस वेधशाला को सूर्य और पृथ्वी के बीच एक खास जगह पर स्थापित किया जाएगा जिससे वह हर पल सूर्य पर नजरें जमाए रख पाएगा। आदित्य एल 1 भारत का पहला ऐसा अभियान है जो केवल सूर्य के अध्ययन के लिए ही पूरी तरह से समर्पित है।
 
सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी करीब 15 करोड़ किलोमीटर है वहीं जहां आदित्य एल1 को स्थापित किया जाएगा, वह लैगरेंज बिंदु 1 पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर दूर सूर्य और पृथ्वी के बीच स्थित है। आदित्य एल-1 का मकसद सूर्य के वातावरण और उसकी जटिल प्रक्रियाओं का गहन अध्ययन करना होगा. इसमें कोरोनल मास इजेक्शन, अनियमित रूप से बनने वाली सौर ज्वालाएं, सतह वायुमंडल और दोनों की आपस में अंतरक्रियाएं को समझना इसके उद्देश्यों में शामिल होगा. सौर उत्सर्जन की घटनाएं और उनकी उत्पत्ति के कारकों को भी समझने में भी यह वेधशाला मददगार होगी।
 
इसरो के अनुसार, “इससे सौर हलचलों को करीब से अध्ययन करने और रियल टाइम में इसका अंतरिक्ष के मौसम पर क्या असर पड़ता है, इसके बारे में जानने में मदद मिलेगी.” इससे विकिरण का भी अध्ययन हो सकेगा जो कि पृथ्वी तक आते आते वातावरण की वजह से फ़िल्टर हो जाती है। इसरो को उम्मीद है कि यह मिशन कुछ ऐसी अहम जानकारियां देगा जिससे सूर्य के बारे में हमारी समझदारी बेहतर होगी।
 
आदित्य एल-1 यान को अपने ऑर्बिट तक पहुंचने में चार महीने का समय लगेगा। सबसे पहले अंतरिक्ष यान को पृथ्वी की निचली ऑर्बिट में स्थापित किया जाएगा। इसके बाद, ऑर्बिट को और अधिक अण्डाकार बनाया जाएगा और बाद में ऑन-बोर्ड प्रणोदन (Propulsion) का उपयोग करके अंतरिक्ष यान को L1 की ओर प्रक्षेपित किया जाएगा।
 
भारत के पहले सूर्य मिशन आदित्य एल-वन को पूरा करने में करीब 125 दिन लगने वाले हैं. मिशन आदित्य से ऐसी जानकारियां जुटाई जाएंगी, जिनसे धरती पर जीवन को बेहतर करने में मदद मिलेगी। भारत सूरज के बारे में स्टडी करने जा रहा है। धरती के लिए सूरज की अहमियत कितनी है, इसको इस बात से समझा जा सकता है कि हमारा जीवन सूरज के बिना संभव नहीं है. सूरज के बारे में अध्ययन करके ये जाना जा सकेगा कि मौसम में बदलाव और ग्लोबल वार्मिंग की असली वजह क्या है? आदित्य-L1 में सात पेलोड यानी उपकरण लगे हैं. इनके जरिए फोटोस्फेयर, क्रोमोस्फेयर और सूरज की सबसे बाहरी परतों यानी कोरोना की स्टडी होगी।
 
निश्चित रूप से आजादी के इस अमृत काल में इसरो के वैज्ञानिकों ने हर भारतीय को गौरांवित होने का बेहतर अवसर दिया है। चंद्रयान-3 की सफलता के बाद पूरा देश जहां खुशियों मना रहा रहा था, इस बीच सूर्य मिशन की सफल लॉन्चिंग ने हम सभी की खुशियों को दुगुना कर दिया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में देश इसी तरह विकास के नए आयाम स्थापित करेगा।।
 
 
1. क्या सूर्य मिशन की सफलता ने हर भारतीय को गौरांवित होने का अवसर दिया है?
 
2. क्या अब चांद के बाद सूर्य पर भी अब भारतीय वैज्ञानिको की सफलता की मुहर स्थापित होगी ?
 
हृदय की कलम से ! 
 
आपका 
 
– धनंजय सिंह खींवसर