रविवार का सदुपयोग – अंश-उन्नतीसवाँ


रविवार का सदुपयोग

 

साप्ताहिक सूक्ष्म ब्लॉग | संवाद से परिवर्तन का प्रयास
 
अंश-उन्नतीसवाँ 
 
भारतीय नूतन वर्ष – भारतीय संस्कृति के इस महापर्व का करें भव्यता से स्वागत
 
3 दिन बाद भव्यता से शुरू होने वाले नूतन वर्ष में ना केवल वर्ष परिवर्तन हो रहा है बल्कि सृष्टि में बदलाव की शुरुआत होगी। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के इस अवसर पर आप सभी को भारतीय नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं। यूं तो पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव के कारण पिछले कुछ समय से हमने भी 1 जनवरी को नए साल का जश्न मनाना शुरू कर दिया, लेकिन वास्तव में भारतीय नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर नए वर्ष की शुरुआत होती है। अंग्रेजी नव वर्ष की तरह इस दिन केवल कलैंडर ही नहीं बल्कि भारतीय नववर्ष के साथ सृष्टि में बदलाव देखने को मिलता है।
 
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को सृष्टि का निर्माण दिवस माना जाता है और इसीलिए वास्तव रूप से यही नव वर्ष की शुरुआत है इस दिन को संवत्सरारंभ, गुडीपडवा, युगादी, वसंत ऋतु प्रारंभ दिन आदी नामों से भी जाना जाता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नववर्ष मनाने के नैसर्गिक, ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक कारण हैं।
 
जगतपिता ब्रह्माजी ने इसी दिन सृष्टि का निर्माण किया था। अनुमान के मुताबिक, करीब 1 अरब 14 करोड़ 58 लाख 85 हजार 123 साल पहले सृष्टि की रचना हुई था। महाराजा विक्रमादित्य ने इसी दिन विक्रमी संवत का शुभारंभ किया था। इसी दिन देवी दुर्गा की आराधना का नवरात्रि महापर्व प्रारंभ होता है। सतयुग में प्रभु श्री रामचंद्रजी का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था। न्याय प्रणेता महर्षि गौतम की जयंती भी इसी दिन मनाई जाती है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही महाराजा युधिष्ठिर का राज्याभिषेक हुआ था। आराध्य देव वरुणावतार भगवान झूलेलाल साईं का अवतरण दिवस भी मनाया जाता है। गुरु अंगद देव साहिब का अवतरण भी इसी दिन हुआ था। महर्षि दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की थी।
 
वहीं अगर अंग्रेजी नववर्ष की बात की जाए तो इस दिन केवल कैलेंडर बदलता है। इस दिन ना तो मौसम बदलता है न ही ऋतु बदलती है। ना शैक्षणिक सत्र बदलता है, ना कृषि बदलती है। ना पेड़ पौधों की रंगत बदलती है और ना ही सृष्टि के नक्षत्रों में कोई बदलाव आता है। लेकिन इसके विपरीत यदि भारतीय नव वर्ष की बात की जाए तो इस दिन आमूलचूल परिवर्तन देखने को मिलता है। वसंत ऋतु में पौधों पर पतझड़ के बाद नई पत्तियों का आगमन होता है। 1 अप्रैल से स्कूलों के नए सत्र की शुरुआत होती है। वित्तीय वर्ष की शुरूआत भी 1 अप्रैल को होती है। वही चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को कई ग्रहों और नक्षत्रों की चाल भी बदलती है। ऐसे में आध्यात्मिक कारणों के साथ-साथ वैज्ञानिक कारणों को भी माने तो वास्तव में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा ही नए वर्ष की शुरुआत है।
 
पाश्चात्य संस्कृति की चकाचौंध में हमने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के स्थान पर 1 जनवरी को ही नए वर्ष की शुरुआत मान ली। इस दिन बड़े स्तर पर कार्यक्रम आयोजित होते हैं। जश्न के नाम पर नशे की पार्टियां और आतिशबाजी होती है लेकिन वहीं दूसरी तरफ भारतीय नव वर्ष के आयोजन के लिए लोगों को जागरूक करना पड़ रहा है। वर्तमान युवा पीढ़ी को भारतीय नववर्ष की जानकारी देने के लिए विभिन्न राष्ट्र प्रेम से ओतप्रोत संगठनों द्वारा जागरूकता कार्यक्रम चला रहे हैं और इस दिन अपने स्तर पर विभिन्न कार्यक्रम भी आयोजित कर रहे हैं लेकिन इन सभी के प्रयासों की सार्थकता तभी सिद्ध होगी जब हम सभी 1 जनवरी की तरह ही भारतीय नव वर्ष का स्वागत भी उत्साह और उमंग के साथ करेंगे। आमजन स्वयं आगे आकर इस नए वर्ष का स्वागत करें एक दूसरे को कुमकुम तिलक लगाकर और मांगलिक गुड़ खिलाकर नववर्ष की शुभकामनाएं दें तो निश्चित रूप से वर्तमान परिदृश्य में बदलाव देखने को मिलेगा।
 
गत कुछ सालों में इस आयोजन में लोगों की सहभागिता बढ़ना एक सकारात्मक संकेत है। मेरा आग्रह हैं की आप सभी भारतीय संस्कृति के इस महापर्व का भव्यता से स्वागत करें और इस पर्व को उत्साह के साथ मनाएं।
 
1. क्या आप भी मानते हैं कि भारतीय नव वर्ष पर कैलेंडर नहीं बल्कि सृष्टि में बदलाव होता है ?
 
2. क्या भारतीय नव वर्ष की भव्यता और महत्व को नव पीढ़ी को बताना हमारी प्राथमिकता नहीं होनी चाहिए?
 
हृदय की कलम से ! 
 
आपका 
 
– धनंजय सिंह खींवसर