रविवार का सदुपयोग
साप्ताहिक सूक्ष्म ब्लॉग | संवाद से परिवर्तन का प्रयास
अंश- इक्यानबेवाँ
“अध्यात्म” से जीवन जीने की कला सीख रहा है आज का “युवा”
अध्यात्म आपको जीवन जीने की कला सिखाता है और आज देश में करोड़ों युवा इस ओर आकर्षित हो रहें है यह अत्यंत हर्ष का विषय है, वर्तमान में भागमभाग और होड़ाहोड भरे जीवन में कई बार ऐसे अवसर आते हैं जब युवा पीढ़ी को अपने स्वविवेक से निर्णय लेकर आगे बढ़ना पड़ता है। जीवन की इन विपरीत परिस्थितियों में यदि युवा पीढ़ी आध्यात्म को केंद्र बनाकर अपना निर्णय लेती है, तो निश्चित रूप से उसकी सफलता के अवसर बढ़ जाते हैं।
आध्यात्म को लेकर कर एक बार फिर हमारी युवा पीढ़ी की सोच में सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिल रहा है। हमारी युवा पीढ़ी अब आध्यात्म से जुड़ना चाहती है और इसके लिए वह आधुनिक तकनीक का भी सहारा ले रही है। आज हम देखेंगे कि हमारे युवा धार्मिक मान्यताओं को अंगीकार करने लगे हैं। वे सामाजिक मान्यताओं को भी समझने लगे हैं और उन्हें समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व का भी एहसास होने लगा है। युवा हमारे महापुरुषों की जीवनी को पढ़कर उनके आदर्शों पर चलने का प्रयास कर रहे हैं और वे चाहते हैं कि जिस तरह से तत्कालीन समय में हमारे महापुरूषों ने स्वविवेक से निर्णय लेकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया था, हम भी उसी तरह विपरीत परिस्थितियों में सही और सकारात्मक निर्णय लेकर आगे बढ़ें ताकि हमारा परिवार, समाज, देश व समस्त विश्व लाभान्वित हो सके।
कुछ समय पहले तक आध्यात्म से दूर हो रही युवा पीढ़ी अब एक बार फिर आध्यात्मिकता की ओर आकर्षित होने लगी है और इसके जरिए जीवन जीने की कला को भी सीख रही है।
आमतौर पर आध्यात्म को धर्म से जोड़ दिया जाता है और धार्मिक मान्यताओं को ही आध्यात्म मान लिया जाता है, लेकिन वास्तविक स्वरूप में अगर देखा जाए तो आध्यात्म जीवन जीने की एक कला है। आध्यात्म किसी व्यक्ति को जीवन को लेकर नया दर्शन प्रदान करता है, एक नया नजरिया देता है। यह मन और शरीर में स्वस्थ आदतों को बढ़ावा देता है।
हमने अपने वेद, पुराण, उपनिषद सहित अन्य धार्मिक ग्रंथो में पढ़ा है कि किस तरह से मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम और भगवान श्री कृष्ण ने आध्यात्म को केंद्र मानते हुए अपने जीवन का सफर तय किया और आज भी उनके जीवन आदर्श हम सभी के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं।
कुछ समय पूर्व हमारी यह युवा पीढ़ी आधुनिकता और पाश्चात्य संस्कृति की चकाचौंध में जीवन के मूल आधार आध्यात्म से दूर होने लगी थी और उसे ऐसा एहसास होने लगा था कि वर्तमान में चारों ओर चकाचौंध वाली जिंदगी ही मानव जीवन की सफलता है l यह आज की पीढ़ी का दोष नहीं है, बल्कि उनके अभिभावकों और समाज द्वारा पैदा किए गए दूषित वातावरण का प्रभाव है। हम तथाकथित आधुनिकता, पाश्चात्य संस्कृति की अधीनता, उच्च शिक्षा, व्यवसायिक दृष्टिकोण, धर्म और ईश्वर के प्रति अविश्वास आदि के कारण आध्यात्म से मुंह मोड़ चुके हैं। फिर आने वाली पीढ़ी से आध्यात्म को अपनाने की अपेक्षा कैसे कर सकते हैं?
आध्यात्म केवल पूजा-पाठ करना और मंदिर में जाना ही नहीं है। आध्यात्मिकता एक जीवन दर्शन है और जीवन जीने की कला है। यह परिवार, समाज और देश के प्रति कर्तव्य पालन का उत्तरदायित्व का प्रतीक है। जो व्यक्ति अपने वृद्ध माता-पिता की सेवा, समाज सेवा या देश सेवा के मर्म को नहीं समझता, उसके तथाकथित आध्यात्मिक या धार्मिक होने का ढोंग करने से कोई फायदा नहीं है। आध्यात्म शिक्षा देने या प्रवचन देने का विषय नहीं है, बल्कि यह आध्यात्म के सिद्धांतों को आत्मसात करके, जीवनचर्या को अपनाने का एक आधार है।
आध्यात्म वह है, जो मन में उत्साह को प्रज्ज्वलित करता है। हमारे युवाओं को यह एहसास करने की जरूरत है कि वे मानवीय गुणों के साथ ही रचनात्मक कार्य कर सकते हैं। उन्हें यह भी एहसास करने की जरूरत है कि उनमें बहुत क्षमता है और वे जो कुछ भी हासिल करना चाहते हैं, उसे पाने की शक्ति भी उनमें है।
आध्यात्मिक ज्ञान मनुष्य को पतन की ओर बढ़ने से रोकता है। भौतिकवाद के कारण मनुष्य में जो अंधकार उत्पन्न हो गया है, उसे अध्यात्म के प्रकाश से ही दूर किया जा सकता है। आध्यात्म जीवन को जीने का एक व्यावहारिक तरीका है जो हमारे आंतरिक जीवन को समृद्ध बनाने के साथ-साथ, हमारे आपसी संबंधों को भी बेहतर बनाता है। यह लोगों को स्वयं, दूसरों और अज्ञात के साथ बेहतर संबंध बनाने के लिए प्रोत्साहित करता है।
आध्यात्मिकता हसमें शांति, वैचारिक समृद्धि और क्षमा की भावना से आपूरित कर तनाव से निपटने में मदद कर सकती है। मनुष्य का मूल आध्यात्म हैं, उसके पुनर्जन्म के संस्कार माता के गर्भ में ही प्राप्त हो जाते हैं। परमात्मा व उनकी मूर्ति में श्रद्धा, ईश्वरीय शक्ति में विश्वास, सम्मान, बड़ों व गुरुजनों के प्रति सम्मान आदि संस्कार आध्यात्म से बचपन में ही प्राप्त हो जाते हैं। मनुष्य का जन्म होता हैं, बड़ा, जवान, वृद्ध हो जाता हैं। इस जीवन रूपी यात्रा में वह आध्यात्म से बहुत कुछ सीखता हैं और अनुभव भी करता हैं। आध्यात्म से व्यक्ति को भीतर से आत्मविश्वास व मानसिक बल मिलता है। व्यक्ति चाहे कैसा भी जीवन जी रहा हो, मन अशांत, व्याकुल या अस्थिर हो उसे सद्ग्रंथ व अध्यात्म का सहारा मिल जाये तो जीवन की यात्रा सुगम व सरल हो जाती हैं।
1. क्या आप यह मानते हैं कि हमारी युवा पीढ़ी एक बार फिर आध्यात्म के माध्यम से जीवन जीने की कला सीख रही है ?
2. क्या आप मानते हैं कि आध्यात्मिक जीवनशैली को अपनाकर अपने जीवन को आदर्श जीवन बनाया जा सकता है ?
हृदय की कलम से
आपका
धनंजय सिंह खींवसर