रविवार का सदुपयोग
साप्ताहिक सूक्ष्म ब्लॉग | संवाद से परिवर्तन का प्रयास
अंश – अट्ठासीवाँ
देश की सांस्कृतिक विरासत को सहेजें युवा
आइए, हम देश की संस्कृति और गांवों की भीगी माटी की सौंधी खुशबू की ओर चलें,
आइए, हम अपनी गौरवशाली रत्नगर्भा संस्कृति की ओर चलें…!
भारत सदियों से सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक माना जाता रहा है और यहां की संस्कृति ने न केवल देशवासियों को बल्कि सात समंदर पार बैठे विदेशियों को भी अपनी ओर आकर्षित किया है। हमारी इस गौरवशाली सभ्यता और संस्कृति के कारण ही आज भारत मजबूती के साथ खड़ा है और अपने निर्धारित लक्ष्य “विकसित राष्ट्र” की तरफ दृढ़ता से कदम बढ़ा रहा है।
हमारे देश का गौरवशाली इतिहास रहा है। यहां की सभ्यता और संस्कृति ने अन्य सभ्यताओं और संस्कृतियों को भी उदारता से स्वीकार किया है। हमारे देश की इस मूल विरासत को नष्ट करने के लिए कई विदेशी ताकतों ने आक्रमण किया और प्रयास किया कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति को कमजोर किया जाए लेकिन हमारी सांस्कृतिक जड़े इतनी गहरी हैं कि उन्हें कमजोर करना तो दूर हिलाना भी संभव नहीं है।
देश के लिए सर्वस्व अर्पण करने, त्याग और बलिदान की भावना विकसित करने, अपने से बड़ों को आदर सम्मान देने, महिला शक्ति की वंदना और अपने से छोटों को कुछ नया करने के लिए प्रेरित करना हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है। “प्राण जाए पर वचन न जाए ” की कहावत को कई बार हमारे देश के वीर महापुरुषों ने चरितार्थ किया है। स्वामीभक्ति और मित्रता के लिए हंसते-हंसते बलिदान होने की परंपरा भारतीय संस्कृति की ही देन है।
निश्चित रूप से भारतीय संस्कृति जितनी आकर्षक है उतनी ही समृद्ध भी है। 15 वीं शताब्दी के बाद जिस तरह से एक ऐसा कालखंड आया जिसमें आतताई ताकतों ने न केवल हमारी सांस्कृतिक विरासतों को चोट पहुंचाने की कोशिश की, बल्कि देश की युवा पीढ़ी को भी सनातन संस्कृति से दूर करने का प्रयास किया। इन बाहुबली शक्तियों के आगे एक बार तो ऐसा प्रतीत होने लगा था कि शायद आने वाले वर्षों में हमारी सांस्कृतिक विरासत नहीं बचेगी, लेकिन जिस मजबूती के साथ हमारी संस्कृति और सभ्यता खड़ी है, विदेशी ताकतें भी इसे ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा पाई और आखिरकार उन्हें भी भारत के सामने नतमस्तक होना पड़ा।
देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने में हमारी सभ्यता और संस्कृति की सबसे बड़ी भूमिका है, लेकिन पिछले कुछ समय से हमारे युवा भारत की गौरवशाली सभ्यता और संस्कृति को छोड़कर पाश्चात्य संस्कृति की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। हमारे पूर्वजों के त्याग और बलिदान के कारण लंबे संघर्ष के बाद हमारा देश 1947 में आजाद हुआ। स्वतंत्रता आंदोलन में हमने अंग्रेजों को तो भारतीय सीमाओं से बाहर खदेड़ दिया लेकिन गुलामी की प्रतीक कई छोटी-छोटी बातें आज भी हमारे समाज को खोखला करने का प्रयास कर रही हैं।
पाश्चात्य संस्कृति की चकाचौंध में हमारे युवा अंधे होते जा रहे हैं और उन्हें ऐसा लगता है कि भारतीय संस्कृति पिछड़ेपन का प्रतीक है और पाश्चात्य संस्कृति उन्हें आधुनिक बनाती है। संस्कृति को जिंदा रखने के लिए भाषा, पहनावा, खानपान, रीति रिवाज और व्यवहार सबसे अधिक महत्वपूर्ण होता है और आज हमारे युवा इन्हीं सभी से विमुख हो रहे हैं।
हमारे युवाओं को हिंदी और स्थानीय भाषा में बोलने में शर्म महसूस होती है और अंग्रेजी बोलकर वे खुद को आधुनिक समझते हैं। फैशन के नाम पर फूहड़ता और अंग प्रदर्शन करने वाले कपड़े पहनकर वे इठला रहे हैं। अमर्यादित खानपान और नशे के छल्ले उड़ाते युवा इसे अपना स्टेटस सिंबल मानते हैं और अपने से बड़ों और छोटों का मान सम्मान रखना भी उन्हें उचित नहीं लगता है। इस तरह की छोटी-छोटी बातें ही हमारे युवाओं को हमारी सांस्कृतिक विरासत से दूर करने का प्रयास कर रही हैं। युवाओं को मंदिर जाते हुए शर्म आती है लेकिन अनैतिक नशाघरों में जाकर वे अपने आप को आधुनिक कहलाना पसंद करते हैं।
हमारा देश इन दिनों जिस संक्रमण काल से गुजर रहा है, उसमें हम सभी की यह सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम हमारे युवाओं को हमारी समृद्ध एवं गौरवशाली परंपराओं से अवगत कराएं और उन्हें इस बात का अहसास कराएं कि हमें हमारी संस्कृति पर शर्म करने की बजाय गर्व करने की आवश्यकता है।
इतिहास में ऐसे कई उदाहरण है जब कई विदेशियों ने अपनी पाश्चात्य संस्कृति छोड़ भारतीय संस्कृति को अपनाया है और अपना पूरा जीवन इस सांस्कृतिक विरासत को सहजने में समर्पित किया। यह शुभ संकेत है कि पिछले कुछ समय से युवाओं की सोच में सकारात्मक बदलाव आने लगे हैं। जिस तरह से देश में एक बार फिर सांस्कृतिक विरासत को सहेजने के प्रयास किए जा रहे हैं, उससे कहीं न कहीं युवाओं के मन में भी धर्म और आस्था की डोर मजबूत हुई है।
यही सबसे उचित समय है कि हम युवाओं को हमारी संस्कृति से जुड़ने के लिए प्रेरित करें। हमारी सांस्कृतिक विरासत को बनाए रखने में हमें किस तरह का संघर्ष करना पड़ा, उन्हें इस बारे में विस्तार से जानकारी दें तो निश्चित रूप से एक बार फिर हमारी युवा पीढ़ी न केवल भारतीय संस्कृति और सभ्यता को जान पाएगी बल्कि वह इसे अपने जीवन में भी उतार सकेगी। जिस दिन हमारे शत प्रतिशत युवाओं ने हमारी संस्कृति और सभ्यता पर गर्व करना प्रारंभ कर दिया, उसे दिन भारत एक बार फिर विश्व गुरु बनने की राह पर चल पड़ेगा।
1. क्या आप मानते हैं कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता के गौरवशाली इतिहास और परंपराओं को हमें अपने जीवन में अपनाना चाहिए।
2. क्या आप मानते हैं कि देश के युवाओं को यहां की सभ्यता और संस्कृति का गहराई से ज्ञान कराने की आवश्यकता है?
हृदय की कलम से।
आपका
धनंजय सिंह खींवसर