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अंश : 112 वाँ
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्थापना शताब्दी वर्ष: समाज सेवा और राष्ट्र निर्माण की प्रेरक यात्रा
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक संस्थान ही नहीं है बल्कि प्रतीक है भारत की सांस्कृतिक आत्मा का, भारत की धर्म प्राण संस्कृति का। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत के गौरवशाली इतिहास को सहेजकर उसे आज भी जीवंत बनाए हुए है। यह हमारे लिए बहुत गौरव का क्षण है कि हम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष के साक्षी हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना 27 सितंबर 1925 को नागपुर में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी। 100 वर्षों का यह सफर भारतीय समाज के हर पक्ष को छूता है चाहे वह सामाजिक सुधार हो, शिक्षा का प्रसार हो, आपदा का प्रबंधन हो या राजनीति का मार्गदर्शन व दिग्दर्शन। इस शताब्दी वर्ष में आरएसएस के योगदान, चुनौतियों और भविष्य की दिशा पर विचार करना अत्यंत प्रासंगिक है। संघ ने अपने आदर्श वाक्य “वसुधैव कुटुंबकम्” को आत्मसात कर भारतीय संस्कृति और मूल्यों को निरंतर सशक्त बनाया है।
डॉ. हेडगेवार का सपना एक ऐसा संगठन बनाना था जो समाज में अनुशासन, आत्मनिर्भरता और राष्ट्रभक्ति के मूल्यों को बढ़ावा दे। उनका मानना था कि विदेशी शासन से मुक्ति पाने के लिए केवल राजनीतिक आंदोलन पर्याप्त नहीं था, समाज के हर व्यक्ति को मानसिक रूप से मजबूत और एकजुट होना जरूरी था। इस उद्देश्य से उन्होंने युवाओं को संगठित करने के लिए आरएसएस की नींव रखी।
शुरुआत में संघ का कार्य सिर्फ कुछ स्वयंसेवकों तक सीमित था। सुबह-शाम शाखाओं में व्यायाम, प्रार्थना और अनुशासन से प्रेरित गतिविधियाँ कराई जाती थीं। धीरे-धीरे यह संगठन समाज में अपनी पकड़ मजबूत करने लगा। 1930 के दशक में संघ ने स्वतंत्रता आंदोलन में अप्रत्यक्ष रूप से भाग लेकर अपने राष्ट्रप्रेम का परिचय दिया।
आरएसएस ने भले ही खुद को प्रत्यक्ष राजनीतिक आंदोलन से दूर रखा लेकिन स्वतंत्रता सेनानियों को प्रेरित किया। संघ के स्वयंसेवक सामाजिक जागरूकता फैलाने, युवाओं को अनुशासित बनाने और ग्रामीण क्षेत्रों में संगठन की शक्ति का विस्तार करने में लगे रहे। उनका मानना था कि स्वतंत्रता के बाद भी भारत के पुनर्निर्माण के लिए अनुशासित और संस्कारित समाज की आवश्यकता होगी।
महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर 1948 में प्रतिबंध लगा दिया गया। संगठन पर आरोप लगाया गया कि उसके कार्यकर्ता हत्या में शामिल थे लेकिन जांच के बाद संघ को निर्दोष पाया गया और 1949 में उस पर लगा प्रतिबंध हटा लिया गया। इस कठिन समय में भी संघ ने संयम और धैर्य दिखाया। प्रतिबंध के बावजूद संघ का विस्तार रुका नहीं और उसने पहले से अधिक ऊर्जा के साथ समाजसेवा के क्षेत्र में काम शुरू किया।
आरएसएस का प्रभाव केवल शाखाओं तक सीमित नहीं रहा। संगठन ने शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सेवा के क्षेत्रों में भी कई संस्थाएँ स्थापित कीं। इनमें प्रमुख हैं -विद्या भारती, सेवा भारती, भारतीय मजदूर संघ एवं विवेकानंद केंद्र इत्यादि।
आरएसएस की प्रेरणा से 1980 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की स्थापना हुई। बीजेपी ने राजनीति में संघ के विचारों को आगे बढ़ाया और भारत के राजनीतिक परिदृश्य को नई दिशा प्रदान की। 2014 में श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में बीजेपी की विराट जीत ने संघ की विचारधारा को मुख्यधारा में ला दिया।
आरएसएस के स्वयंसेवक हर प्रकार की आपदाओं में अग्रिम पंक्ति में खड़े रहे हैं। 2001 के गुजरात भूकंप हो या 2020 की कोविड-19 महामारी, संघ ने निस्वार्थ भाव से जरूरतमंदों की सेवा की। कोविड काल में संघ के स्वयंसेवकों ने ऑक्सीजन, भोजन और चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराई जिसे समाज के विभिन्न वर्गों ने मुक्तकंठ से सराहा।
आरएसएस ने समाज में जातिवाद उन्मूलन, सामाजिक समरसता और महिला सशक्तिकरण के लिए भी महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। संगठन की पहल पर कई क्षेत्रों में जातिगत भेदभाव कम हुआ है और विभिन्न समुदायों के बीच एकता का भाव बढ़ा है। संघ का यह भी प्रयास रहा है कि महिलाएँ समाज में नेतृत्वकारी भूमिका निभाएँ। इस दिशा में राष्ट्रीय सेविका समिति का गठन किया गया जो महिलाओं को सशक्त बनाने में अग्रणी भूमिका निभा रही है।
आरएसएस को अपने सफर में आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा है। कई बार उस पर धार्मिक पक्षपात और सांप्रदायिकता फैलाने के आरोप लगे हैं। लेकिन संघ ने हमेशा यह स्पष्ट किया है कि उसका उद्देश्य समाज में नैतिकता और अनुशासन स्थापित करना है। आलोचनाओं का उत्तर संघ ने अपने सेवा कार्यों और अनुशासन से दिया है।
शताब्दी वर्ष केवल अतीत की उपलब्धियों का उत्सव नहीं है बल्कि यह भविष्य की दिशा तय करने का अवसर भी है। आरएसएस अब युवाओं को आधुनिक तकनीक और विज्ञान से जोड़ने, पर्यावरण संरक्षण पर काम करने और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर सक्रिय भूमिका निभा रहा है।
संगठन का ध्यान अब आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में सहयोग देने पर है। वह शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में युवाओं को सक्षम बनाने की दिशा में काम कर रहा है। साथ ही संघ की कई शाखाएँ स्वच्छ भारत अभियान और प्लास्टिक मुक्त समाज के अभियानों में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं।
यह शताब्दी वर्ष संघ और देश दोनों के लिए प्रेरणा का स्रोत है जो हमें याद दिलाता है कि जब समाज एकजुट होता है तो कोई भी चुनौती बड़ी नहीं होती। आरएसएस की यह यात्रा हमें यही संदेश देती है कि सेवा और समर्पण से ही राष्ट्र की प्रगति संभव है।
जय हिंद
– क्या आप मानते हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विकास के बहुआयामी दृष्टिकोण के साथ अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल रहा है?
– क्या आप भी मानते हैं कि अनुशासन एवं राष्ट्र के प्रति पूर्ण समर्पण के कारण ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 100 वर्षों का यह सफर सफलतापूर्वक तय कर पाया है?
हृदय की कलम से
आपका
धनंजय सिंह खींवसर