रविवार का सदुपयोग
साप्ताहिक सूक्ष्म ब्लॉग | संवाद से परिवर्तन का प्रयास
अंश : 108 वाँ
एक देश, एक चुनाव
“One Nation, One Election
देश के चहुँमुखी विकास के लिए जरूरी है ‘एक देश एक चुनाव’
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में तीसरी बार बनी मोदी 3.0 सरकार ने अपने संकल्प पत्र के एक ओर वायदे को पूरा करते हुए ” एक देश एक चुनाव” के निर्णय पर कैबिनेट की मोहर लगा दी है। प्रधानमंत्री जी ने 2014 में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ यानी एक देश एक चुनाव का वादा किया था जिसके बाद कैबिनेट ने ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ प्रस्ताव को मंजूरी दे दी।
“वन नेशन वन इलेक्शन” की प्रक्रिया तय करने के लिए पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में 8 सदस्यीय एक कमेटी बनाई गई थी। 2 सितंबर, 2023 को गठित इस जांच कमेटी के सदस्यों ने सात देशों की चुनाव व्यवस्था का अध्ययन किया। टेकहोल्डर्स-एक्सपर्ट्स से चर्चा और रिसर्च के बाद 191 दिन में 18 हजार, 626 पन्नों की एक रिपोर्ट तैयार की गई। इस वर्ष 14 मार्च को राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। इस बुधवार को केंद्रीय कैबिनेट ने रिपोर्ट पर अपनी मंजूरी दी जिसमें कमेटी ने सभी विधानसभाओं का कार्यकाल 2029 तक बढ़ाने का सुझाव दिया है।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने कश्मीर में धारा 370 को हटाकर पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी के ध्येय वाक्य “एक देश, एक विधान, एक निशान” की संकल्पना को साकार कर दिखाया और अब देश में “एक देश, एक चुनाव” के वायदे को पूरा करने के प्रयासों में जुटी है।
ऐसा नहीं है कि “एक देश एक चुनाव ” की यह सोच अभी बनी है। सन् 1952, 1957, 1962, 1967 में लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ करवाए गए थे, लेकिन वर्ष 1968-69 में कुछ राज्यों की विधानसभाएँ विभिन्न कारणों से समय से पहले भंग कर दी गईं। साथ ही वर्ष 1971 में पहली बार लोकसभा चुनाव भी समय से पहले हो गए थे, जिसके बाद यह परम्परा टूट गई।
चुनावों को लोकतंत्र का सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है। अगर हम देश में होने वाले चुनावों पर नज़र डालें तो देखेंगे कि हर वर्ष किसी न किसी राज्य में चुनाव होते रहते हैं। चुनावों की इस निरंतरता के कारण देश लगातार चुनावी मोड में बना रहता है। इससे न केवल प्रशासनिक और नीतिगत निर्णय प्रभावित होते हैं बल्कि देश पर भारी बोझ भी पड़ता है। साथ ही जो समय नीति निर्माण और उनके क्रियान्वयन पर खर्च होना चाहिए, वह समय भारी भरकम चुनाव प्रचार एवं उससे जुड़े क्रियाकलापों पर ही खर्च हो जाता है।
‘एक देश-एक चुनाव’ से राजकीय धन की बचत होने के साथ ही सरकार की नीतियों का समय पर कार्यान्वयन सुनिश्चित हो सकेगा और प्रशासनिक अधिकारी चुनावी गतिविधियों में संलग्न रहने के बजाय विकासात्मक गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित कर पाएंगे। मतदाता सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों को राज्य और केंद्रीय दोनों स्तरों पर परख सकेंगे। ‘एक देश-एक चुनाव’ के सिद्धांत को अमल में लाकर चुनाव के खर्च, पार्टी के खर्च आदि पर नज़र तथा नियंत्रण रखने में सहूलियत होगी।
लोकसभा और विधानसभा के एक साथ चुनाव से पैसे की बड़ी बचत का तो होगी ही साथ ही आर्थिक विशेषज्ञों का आकलन है कि इससे जीडीपी में लगभग 1.5 प्रतिशत तक की वृद्धि हो सकती है। इस नियम के लागू होने पर सरकारें सही मायने में कम से कम साढ़े चार वर्ष विकास कार्य कर पाएंगी। फिलहाल लगातार अलग अलग होने वाले चुनावों और आचार संहिता के कारण सरकारों के हाथ 12-15 महीने तक बंधे होते हैं। यानी पांच साल के लिए चुनी गई सरकार सही मायने में चार साल से कम ही काम करती है।
प्रधानमंत्री जी ने इस साल 15 अगस्त को स्वाधीनता दिवस समारोह के दौरान लाल किले से अपने भाषण में भी एक देश एक चुनाव की बात कही थी। उन्होंने कहा था कि देश में बार-बार चुनाव से विकास में बाधा आती है। उन्होंने वन नेशन-वन इलेक्शन के लिए सभी राजनीतिक पार्टियों से भी आगे आकर सहयोग की अपील की है। देश के प्रत्येक राजनीतिक दल को चाहिए कि वह अपने तुच्छ राजनीतिक स्वार्थ को तिलांजलि देकर देशहित की बातों को प्राथमिकता दे और हर बात में टांग अड़ाने की प्रवृत्ति को छोड़ दे क्योंकि राष्ट्र हित से बढ़कर कुछ भी नहीं। जो भी निर्णय देश की भलाई के लिए लिया जाता है, उसका समर्थन किया ही जाना चाहिए। यही एक सफल व संपन्न राष्ट्र की पहचान है।
क्या आप मानते हैं कि ‘एक देश एक चुनाव’ को लागू किया जाना देश के सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक है?
क्या आप मानते हैं कि एक देश एक चुनाव होने से देश पर चुनावी आर्थिक बोझ कम होगा एवं विकास कार्य में तेजी आएगी।
हृदय की कलम से !
आपका
– धनंजय सिंह खींवसर