रविवार का सदुपयोग
साप्ताहिक सूक्ष्म ब्लॉग | संवाद से परिवर्तन का प्रयास
अंश – 104 वां
श्री कृष्ण जन्मोत्सव
श्रीकृष्ण : आदर्शों के सागर
आप सभी को कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
भगवान कृष्ण का अनुपम चरित्र जन-जन के हृदय में समाया हुआ है। श्री कृष्ण लीला पुरुषोत्तम हैं। उनका बाल रूप इतना मनोहारी है कि आज भी हर मां ममता के वाशीभूत होकर अपने बच्चे को कान्हा पुकारती है। भगवान कृष्ण ने उपदेश दिया तो ऐसा दिया कि आज भी भगवद गीता के रूप में उनका हर शब्द हमारे लिए प्रेरक और मार्गदर्शन बना हुआ है। युद्ध में शस्त्र ना उठाकर भी महाभारत के युद्ध का ऐसा अनुपम संचालन किया कि पांच पांडव कौरवों की महासागर सी सेना को पराजित कर धर्म की पताका फहराने में सफल हो गए। भगवान कृष्ण महिला सशक्तिकरण के प्रतीक हैं क्योंकि उन्होंने जब ब्रज में गोपियों के साथ होली खेली तो उनका उद्देश्य मनोरंजन नहीं था बल्कि स्त्रियों की रूढ़िवादी संस्कारों से मुक्ति का वृहद उद्देश्य इस उपक्रम में निहित था। यही कारण है कि भगवान कृष्ण हर रूप में आज हमें प्रिय हैं। चाहे उनका बाल रूप हो, सखा रूप हो या योगेश्वर का परम आनंददायक अलौलिक स्वरूप।
सोमवार को पूरा देश हर्षोल्लास के साथ कन्हैया का जन्मोत्सव मनाएगा। वैसे तो श्री कृष्ण का संपूर्ण जीवन ही एक प्रबंधन की किताब है जिसे सैंकड़ों-हजारों बार सुन लिया जाए तो भी अधूरा सा लगता है। कृष्ण का जीवन ऐसी ही अनूठी गाथाओं से आपूरित है जरूरत है उन्हें सही नजरिए से समझने की। किसी भी नजरिए से देखा जाए भगवान कृष्ण का जीवन हमारे लिए प्रेरणा और संजीवनी शक्ति का स्रोत है। भगवान कृष्ण का व्यक्तित्व हमें निराशा में आशा की किरण दिखाता है, उदास चेहरे पर मुस्कान लाता है और अपने कर्तव्य के निर्वहन की प्रेरणा देता है।
श्री कृष्ण को पता था कि सांसारिक चक्र में सब कुछ तय है और विधि द्वारा निश्चित है। ऐसे में स्वयं को उस तय रंगमंच का एक पात्र बनाकर अन्य सभी पात्रों के साथ मिलकर भूमिका निभाना एक कमाल की बात है। हम सबको भी यही समझाने की जरूरत है कि भले ही हम इस संसार रूपी रंगमंच के पात्र है लेकिन हमें अपने दायित्व का निर्वहन बखूबी करना चाहिए क्योंकि जो जैसे कर्म करता है वैसे फल पाता है, यही तो भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है।
भगवान कृष्ण का जीवन चरित्र आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उस समय हुआ करता था। यूं तो भगवान श्रीकृष्ण और उनकी लीलाओं से हम सभी परिचित हैं। उनके विचारों, कर्मों, कलाओं और लीलाओं पर हम ध्यान देंगे तो पाएंगे कि श्रीकृष्ण सिर्फ एक भगवान या अवतार भर नहीं थे। इन सबसे आगे वह एक ऐसे पथ प्रदर्शक और मार्गदर्शक थे जिनकी सार्थकता हर युग में बनी रहेगी। आज के बदलते माहौल और जीवनशैली में भी कान्हा उतने ही महत्वपूर्ण हैं। इतना ही नहीं समाज के आम जनजीवन से हटकर मैनेजमेंट के क्षेत्र में तो कृष्ण को सबसे बड़ा मैनेजमेंट गुरु माना जाता है।
अर्जुन ने कुरुक्षेत्र में युद्ध के लिए भगवान श्रीकृष्ण के रूप में श्रेष्ठ सारथी को चुना था और अंत में धर्म की विजय हुई। इसलिए किसी भी कार्य में सफलता के लिए नेतृत्वकर्ता सही होना आवश्यक है।
गीता में श्री कृष्ण मनुष्य को लगातार आत्मनिरीक्षण के लिए प्रेरित करते हैं। कई बार मनुष्य दूसरों के कहने पर उद्विग्न हो जाता है और कई बार अपने कटु वचनों से दूसरों को उद्विग्न कर देता है। अपने व्यावहारिक जीवन में यह दोनों बातें भविष्य के लिए घातक होती हैं। भगवान कृष्ण इनसे बचते हुए स्वधर्म का पालन करने की भी सलाह देते हैं।
नवसृजन और जनकल्याण के प्रणेता भगवान श्रीकृष्ण की अनेक छवियां भारतीय जनमानस से जुडी हुई हैं। श्रीकृष्ण में सबसे खास बात यह है कि उनका दर्शन व्यावहारिक था। यही वजह है कि वे दुनिया के पहले मैनेजमेंट गुरु भी कहलाते हैं। श्री कृष्ण ने न केवल कहा बल्कि अपने शब्दों को साकार करके भी दिखाया। जैसे गीता के रूप में उनकी वाणी अनुकरणीय है, वैसे ही उनका जीवन भी। श्री कृष्ण ने सिखाया कि रिश्ते कैसे निभाए जाते हैं, अपने पूरे परिवेश को प्रेम से कैसे भरा जाता है और जीवन के उतार-चढ़ाव का सामना मुस्कुराते हुए कैसे किया जाता है। इस जन्माष्टमी कृष्ण की न केवल पूजा करें बल्कि उन्हें अपने जीवन में उतारने का भी संकल्प लेना चाहिए।
भगवान श्री कृष्ण का जीवन प्रेम का पर्याय है। वे मां, पिता, भाई बलराम, सखा अर्जुन और गोपियों सहित प्रकृति, यहां तक कि पशु-पक्षियों से भी सदैव प्रेम करते हैं। कवि रसखान ने कृष्ण के प्रेम को अभिव्यक्त करते हुए लिखा है कि शेषनाग, गणेशजी, शिव, विष्णु और इंद्र जिनकी महिमा का निरंतर गान करते हुए जिन्हें अनादि, अनंत, अखण्ड, अछेद व अभेद्य बताते हैं; वेद से नारद तक और शुकदेव से व्यास तक सारे ज्ञानी और साधक जिनके स्वरूप को जानने का प्रयत्न करते रहते हैं मगर जान नहीं पाते; ऐसे परम परमात्मा जब मानव रूप में श्रीकृष्ण अवतार ग्रहण करते हैं तो ग्राम्य बालाएं महज़ एक दोना भर छाछ के बदले उनसे नाच नचवाती हैं और ‘प्रेम’ के वशीभूत कृष्ण उनके समक्ष नाचने लगते हैं। श्री कृष्ण सिखाते हैं कि निश्छल प्रेम हर क्षण को सुख से भर देता है और पशु-पक्षियों सहित पूरे परिवेश को आनंदमय कर देता है।
श्री कृष्ण सिखाते है कि जीवन में कितनी भी प्रतिकूल परिस्थिति क्यों न हो, उसका मुकाबला मुस्कराते हुए ही करना चाहिए। श्री कृष्णा हमारे सामने सच्ची मित्रता का सुंदर आदर्श भी प्रस्तुत करते हैं। तो आइए, हम सभी भगवान श्री कृष्णा के जन्मोत्सव पर उनके संदेशों को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करें।
एक बार पुनः श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं
– क्या आपको नहीं लगता है भगवान कृष्ण आज भी जन-जन के हृदय में समाए हुए हैं।
– क्या आप नहीं मानते कि भगवान श्री कृष्ण का जीवन और वाणी आज भी प्रासंगिक है।
जय श्री कृष्णा
जय हिंद
हृदय की कलम से।
आपका
धनंजय सिंह खींवसर