रविवार का सदुपयोग– अंश- साठवाँ


रविवार का सदुपयोग 

 
साप्ताहिक सूक्ष्म ब्लॉग | संवाद से परिवर्तन का प्रयास
 
अंश- साठवाँ
 
” संगठन गढ़े चलो, सुपंथ पर बढ़े चलो।
भला हो जिसमें देश का, वो काम सब किए चलो॥”
 
संगठन की पूजा करो, व्यक्ति विशेष की नही,
व्यक्ति तो आते जाते रहेंगे, लेकिन संगठन स्थायी है।
 
लोकतंत्र के इस महापर्व पर जहां पार्टियां अपनी विचारधारा को लेकर आम जनता के बीच जा रही है, वहीं कई आत्म मुग्ध जनप्रतिनिधि अपने आप को संगठन से ऊपर मानने की भूल कर बैठते हैं। ऐसे व्यक्तियों को इस बात का अंदाज़ होना चाहिए कि हमेशा पार्टी और संगठन बड़ा होता है, व्यक्ति नहीं।
 
प्रदेश में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है और दोनों ही पार्टियों में अपने-अपने कई प्रत्याशियों को चुनावी मैदान उतार दिया है। लोकतंत्र के इस महापर्व में कई उतार चढ़ाव देखने को मिलेंगे। चुनाव में राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के साथ काम कर रहे कई नेता अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए कई बार अपने आप को संगठन से बड़ा मानने लगते है और शायद यही से उनके पतन का दौर शुरू हो जाता है।
 
इतिहास में हमारे सामने ऐसे कई उदाहरण देखने को मिलेंगे जब बड़े से बड़े नेता ने अपने मातृ संगठन से अलग होकर अपने आप को स्थापित करने का प्रयास किया लेकिन उनका यह प्रयास बुरी तरह से विफल रहा और आखिरकार उन्हें एक बार फिर अपने मातृ संगठन की ओर लौटना पड़ा।
 
कार्यकर्ताओं के लिए पार्टी और संगठन मां के समान होती है और जिस व्यक्ति के मन में अपनी मां के प्रति आस्था और श्रद्धा नहीं होगी ,वह कभी भी उन्नति के पथ पर आगे नहीं बढ़ सकता। इसलिए राजनीतिक क्षेत्र में अपने आप को स्थापित करने के लिए सबसे पहले संगठन को सर्वोपरि मानने का संकल्प होना चाहिए। 
 
जब भी कोई व्यक्ति अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत करता है तो उसे संगठन के माध्यम से बहुत कुछ सीखने को मिलता है। किसी भी पार्टी का संगठन वह कुम्हार है जो माटी को घड़े का आकार देता है, वह जौहरी है जो हीरे की परख कर सकता है। इसलिए संगठन की संकल्पबद्धता के साथ काम करने वाले व्यक्ति राजनीतिक क्षेत्र में हमेशा ऊंचाइयों को छूते हैं।
 
पूर्व प्रधानमंत्री श्रद्धेय अटल बिहारी जी वाजपेयी, पूर्व उप प्रधानमंत्री श्रद्धेय लालकृष्ण आडवाणी जी, प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र मोदी जी, श्रीमान अमित शाह जी, श्रीमान जेपी नड्डा जी सहित ऐसे कई उदाहरण देखने को मिलेंगे जिन्होंने अपना पूरा जीवन संगठन की सेवा के प्रति समर्पित किया और यही कारण है कि आज वह राजनीतिक क्षेत्र के क्षितिज में एक ध्रुव तारे के समान चमक रहे हैं। 
 
यह भी संभव है कई बार व्यक्तिगत कारणों के चलते संगठन में बैठे किसी व्यक्ति से मनमुटाव हो सकता है, लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि व्यक्ति संगठन से ही दूरी बना ले…. आने वाले विधानसभा चुनाव में कई दिग्गजों की संगठन के प्रति आस्था की अग्नि परीक्षा होने वाली है, जो जनसेवक संगठन के प्रति निष्ठा की यह अग्नि परीक्षा पास कर लेगा, वह निश्चित रूप से राजनीतिक ऊंचाइयों को हासिल करेगा, इसलिए हमेशा संगठन सर्वोपरी के। ध्येय वाक्य के साथ अपनी पार्टी की रीति और नीति को जन जन तक पहुंचाते हुए उसे मजबूत करने की दिशा में काम करने की वाला व्यक्ति हमेशा संगठन का सच्चा सिपाही होता है।
 
प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र मोदी जी ने अपने कई उद्बोधन में कहा है कि हमेशा संगठन के प्रति निष्ठावान होना चाहिए ना कि व्यक्ति के प्रति…..हो सकता है आने वाले समय में वह व्यक्ति रहे या ना रहे लेकिन संगठन स्थाई रहता है।
 
 
1. क्या आप भी मानते हैं राजनीतिक क्षेत्र में व्यक्ति विशेष नहीं संगठन सर्वोपरि होता है और राजनीतिक क्षेत्र में सफलता हासिल करने के लिए व्यक्ति की नहीं बल्कि संगठन के प्रति निष्ठावान होने की आवश्यकता है?
 
2. क्या आप मानते है की देश को विश्वगुरु बनाने के लिए हमें व्यक्तिगत स्वार्थ छोड़कर संगठन निष्ठ रहने का संकल्प लेना होगा?
 
हृदय की कलम से ! 
 
आपका 
 
– धनंजय सिंह खींवसर