रविवार का सदुपयोग
साप्ताहिक सूक्ष्म ब्लॉग | संवाद से परिवर्तन का प्रयास
अंश – पचासवाँ
वीर दुर्गादास जयंती विशेष
रविवार का सदुपयोग करते हुए आप से संवाद की इस कड़ी में हम आप सभी के सहयोग से अब 50 वें पढ़ाव पर पहुंच चुके है और इस यात्रा में आपके द्वारा प्रेषित प्रेम मुझे इसे “ब्लॉग लेखन” को निरंतरता प्रदान करने के लिए प्रेरित करता है आपके साथ से यह यात्रा अनवरत, अविरल इसी प्रकार चलती रहेगी ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है। मुझे खुशी है की मैंने इन ब्लॉग के माध्यम से अनेकों मुद्दे आपसे साझा करने का प्रयास किया है जिसका सकारात्मक परिवर्तन भी देखने को मिला है। मुझे आपको बताते हुए खुशी हो रही है आज हमारा 50वां अंश उस दिन पर जारी हो रहा है जब देश राष्ट्रनायक वीर दुर्गादास जी जयंती बना रहा है और यदि आज किसी और मुद्दे पर बात हो तो एक अधूरापन महसूस होगा इसलिए आज के विशेष दिवस पर यह संवाद हम सभी के आदर्श, प्रेरणास्त्रोत और विशिष्ठ व्यक्तित्व के धनी वीर दुर्गादास राठौड़ को समर्पित रहेगा।
आज भी मारवाड़ के गाँवों में बड़े-बूढ़े लोग बहू-बेटी को आशीर्वाद स्वरूप यही दो शब्द कहते हैं कि “माई ऐहा पूत जण जेहा दुर्गादास, बांध मरुधरा राखियो बिन खंभा आकाश” अर्थात् हे माता! तू वीर दुर्गादास जैसा पुत्र जन्म दे जिसने मरुधरा (मारवाड़) को बिना किसी आधार के संगठन सूत्र में बांध कर रखा था।
वीर दुर्गादास राठौड़ मेरे जैसे असंख्य लोगों के प्रेरणा स्रोत है, हर समाज, हर जाति, हर वर्ग के लोग इनके जीवन से प्रेरित है। यूं तो आज इस विशिष्ट दिवस पर इस ब्लॉग पर बहुत कुछ लिख जा सकता है लेकिन वीर दुर्गादास जी राठौड़ जिनका वृहद जीवन का हर कण और हर क्षण प्रेरणा से ओतप्रोत है उनके जीवन विराट जीवन पर लिखने के लिए शायद शब्द कम पद जाएंगे इसलिए संक्षिप्त में उनके जीवन पर प्रकाश डालने का प्रयास कर रहा हूं। वीर दुर्गादास जी राठौड़ का जीवन इतना विराट था कि उसे शब्दों की सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता है लेकिन आज उनके जन्मदिवस पर मैं उनके जीवन से जुड़े कुछ अंश आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं।
”माई ऐहड़ौ पूत जण, जेहड़ौ दुर्गादास,
बांध मरुधरा राखियो बिन खंभा आकाश”
आज मारवाड़ के उद्धारक, मारवाड़ के अणबिंदिया मोती, राठौड़ों के यूनिसेफ कहे जाने वाले वीर दुर्गादास जी राठौड़ का जन्मदिवस है। हम सभी लोग जानते हैं कि वीर दुर्गादास राठौड़ एक महान योद्धा थे। उनकी वीरता, कर्तव्य निष्ठा और ईमानदारी के किस्से न सिर्फ मारवाड़ में बल्कि पुरे राजस्थान सहित भारत में गाए जाते हैं।
वीर दुर्गादास राठौड़ ने अपनी मात्रभूमि मारवाड़ (जोधपुर) को मुगलों के आधिपत्य से मुक्त करवाया साथ ही हिन्धू धर्म की रक्षा की…वीर दुर्गादास ने मारवाड़ के राजकुमार अजीत सिंह को औरंगज़ेब के चंगुल से मुक्त करवाकर दिल्ली से मारवाड़ लाये और लगातार कई वर्षों तक मुगलों से संघर्ष कर अजीत सिंह को मारवाड़ का राजा बनवाया। अजीत सिंह के पिता राजा जसवन्त सिंह ने उन्हें भविष्य में मारवाड़ का रक्षक कहा था जिसे उन्होंने सत्य सिद्ध कर दिखाया। ऐसा कहा जाता हैं कि वीर दुर्गादास राठौड़ जो यदि मारवाड़ में नहीं होते तो शायद मारवाड़ राज्य का इतिहास ऐसा नहीं होता जैसा कि आज है। जिस मारवाड़ के लिए उन्होनें जीवन पर्यन्त संघर्ष किया लेकिन जब उन्होंने मारवाड़ से विदाई ली उन्होंने जमीन का एक इंच टुकड़ा भी नही मांगा। इतना विराट व्यक्तित्व आज सभी के लिए प्रेरणा स्रोत है।
13 अगस्त सन 1638 को मारवाड़ रियासत के सालवा गांव में आसकरण और नैतकंवर के घर जन्मे वीर दुर्गादास जी राठौड़ त्याग और बलिदान की मूर्ति थे,न केवल मेवाड़ अपितु पूरे हिंदुस्तान में स्वामी भक्ति के लिए उनका नाम याद किया जाता है।
वीर दुर्गादास राठौड़ न केवल शस्त्र और युद्ध नीति के ज्ञाता थे बल्कि शास्त्रों के भी उतने ही ज्ञाता थे। वीर दुर्गादास सभी धर्म का सम्मान करते थे। मुगल शासक औरंगजेब के पुत्र सुल्तान मुहम्मद अकबर ने अपने पिता के खिलाफ बगावत कर दिया। इस बगावत में वीर दुर्गादास ने उसका साथ दिया। इसी दौरान मुहम्मद अकबर की मृत्यु हो गयी और उसकी संतान वीर दुर्गादास के पास ही रह गयी ऐसे में उन्होने सच्चे मित्र का फर्ज अदा किया।
औरंगजेब अपने नाती पोतो को वापस पाने के लिए व्याकुल हो गया। उसने दुर्गादास जी से विनती की और वे सहमत हो गये। जब बच्चे औरंगजेब के पास पहुचे तो उसने एक काजी से उनको कुरान सिखाने को कहा। यह सुनते ही उसकी छोटी सी नतीन कुरान के आयत पढ़ने लगी। औरंगजेब यह सुनकर आश्चर्य चकित रह गया. बच्चे से पूछे जाने पर उसने बताया कि जब वो दुर्गादास के संरक्षण में थे तब उनको कुरान की शिक्षा देने और उसके धार्मिक गुणों को बनाये रखने के लिए के लिए एक काजी रखा गया था। वीर दुर्गादास के इस व्यवहार से औरंगजेब काफी प्रभावित हुआ।
वीर दुर्गादास का जीवन हमें त्याग, तपस्या, स्वामी भक्ति और बुद्धिमता का प्रतिरूप है। उनके जन्म दिवस पर आज हम सभी को उनके जीवन चरित्र से प्रेरणा लेते हुए एक संकल्प लेने की आवश्यकता है। आज कुछ लोग भारत देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता को क्षति पहुंचाने का प्रयास कर रही है। हम सभी की कि यह सामुहिक जिम्मेदारी है कि हम देश को एक एवं अखण्ड बनाए रखने के लिए सर्वस्व अर्पण करने के लिए तत्पर रहेंगे।
आज सवाल पूछने की जगह 2 बात साझा करना चाहता हूं।
1. वीर दुर्गादास राठौड़ वीरता, कर्तव्य निष्ठा, स्वामिभक्ति और ईमानदारी की प्रतिमूर्ति थे इन गुणों को हमें अपने जीवन में उतारने की जरूरत है।
2. वीर दुर्गादास जी का जीवन हमें मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने की प्रेरणा देता है।
हृदय की कलम से !
आपका
– धनंजय सिंह खींवसर