रविवार का सदुपयोग– अंश- नब्बेवाँ


रविवार का सदुपयोग 
 
साप्ताहिक सूक्ष्म ब्लॉग | संवाद से परिवर्तन का प्रयास
 
अंश- नब्बेवाँ 
 
“खेल” हमारे जीवन का अभिन्न अंग है
 
जीवन के सर्वांगीण विकास के लिए जरूरी है। खेल सिर्फ हमारा मनोरंजन ही नहीं करते, हमारे शरीर को स्वस्थ ही नहीं रखते बल्कि जीवन जीने की कला भी सिखाते हैं।
 
इन दिनों स्कूल में पढ़ने वाले सभी बच्चों के ग्रीष्मकालीन अवकाश चल रहे हैं और बच्चे इन छुट्टियों का आनंद ले रहे हैं लेकिन इस आज के इस ब्लॉग के माध्यम से मैं एक महत्वपूर्ण विषय आपके सामने रखना चाहता हूं जो निश्चित रूप से आपके जीवन में बदलाव ला सकता है।
 
हमने बचपन में देखा कि जब भी हमें समय मिलता था, हम खेल के मैदान में अपना समय व्यतीत करते थे। तब क्रिकेट के अलावा कबड्डी, खो-खो,  बैडमिंटन, सतोलिया, गिल्ली डंडा जैसे कई खेल बच्चे शौक से खेलते थे। इन खेलों के माध्यम से बच्चों के शारीरिक विकास के साथ-साथ मानसिक विकास भी होता था। खेल के मैदान पर जो पसीना बहाया जाता था, वह उन्हें शारीरिक रूप से तो मजबूत बनाता ही था साथ ही इनसे उनकी बुद्धि भी कुशाग्र होती थी। लेकिन अब देखने में आ रहा है कि बच्चों की छुट्टियां टीवी, मोबाइल, लैपटॉप, टैबलेट तक सिमटकर रह गई हैं। बहुत कम बच्चे होंगे जो छुट्टियों में खेल के मैदान में जाकर अपना पसीना बहाते होंगे। इसका सबसे बड़ा कारण है देर रात तक टीवी और मोबाइल से चिपके रहना और फिर सुबह देर से उठना। जब गर्मी बढ जाती है तो बच्चे घर से बाहर निकलना ही नहीं चाहते, सबसे अच्छा तरीका है समय पर सोना और समय पर जागना ताकि सुबह की ताजी हवा में बच्चे कुछ खेल सकें, अपने शरीर और मन दोनों का विकास कर सकें।
 
खेल जीवन का मुख्य आधार होते हैं और जब तक व्यक्ति के जीवन में खेल नहीं होंगे तब तक वह स्वस्थ नहीं रह सकता। इसलिए आज के समय में खेलों से जुड़ने की आवश्यकता बहुत अधिक बढ़ चुकी है। प्रतिस्पर्धा के दौर में हम देखते हैं कि बच्चे मानसिक तनाव के दौर से गुजरते हैं तो वही युवाओं के सामने भी विभिन्न चुनौतियां होती है। इन सभी के बीच यदि कोई व्यक्ति एक खिलाड़ी के रूप में अपना जीवन जीता है तो वह निश्चित रूप से निर्णायक समय में वह अन्यों के मुकाबले बेहतर निर्णय लेता है। 
 
किसी भी सफल मनुष्य के जीवन में अनुशासन का बहुत अधिक महत्व है और यह अनुशासन का पाठ यदि बचपन से ही पढ़ाया जाए तो वह व्यक्ति की दिनचर्या का हिस्सा बन जाता है। अनुशासन के पाठ को पढ़ने के लिए खेल सर्वोत्तम माध्यम है। सदियों से हमारे पूर्वज अपने स्वास्थ्य को लेकर हमेशा जागरूक रहें। नियमित रूप से पैदल चलना, कठिन शारीरिक परिश्रम करना उनके जीवन का हिस्सा रहे और यही कारण है कि वृद्धावस्था में भी वे शारीरिक रूप से स्वस्थ नजर आते हैं।
 
आजकल लोग अपनी जिंदगी में इतना व्यस्त हो गए हैं कि वे खुद के लिए भी समय नहीं निकाल पाते हैं। इसलिए आजकल कम उम्र में ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, हार्ड अटैक जैसी बीमारिया होने लगी है। वर्तमान पीढ़ी में बच्चे जन्म के साथ ही मोबाइल फ्रेंडली हो जाते हैं। टीवी और मोबाइल उनकी दिनचर्या का अभिन्न हिस्सा बनते हैं। इस कारण वे ना तो कोई आउटडोर खेल खेलते हैं और ना ही शारीरिक श्रम करते हैं। 
 
आज हर अभिभावक यह चाहता है कि उनका बच्चा एक बड़ा अधिकारी बने, डॉक्टर बने, इंजीनियर बने, लेकिन खेलों से बच्चे को जोड़ने की कोई नहीं सोचता। खेलों के माध्यम से पेरेंट्स बच्चों के शरीर और मन को तो स्वस्थ बना ही सकते हैं, उनका भविष्य भी खेलों में देख सकते हैं। यहां पैसा और प्रसिद्धि दोनों मिल सकती है और अगर वह ना भी मिले तो भी खेल खेलने में कोई नुकसान नहीं है। हमारे सामने ऐसे कई खिलाड़ियों के उदाहरण है जो भले ही पढ़ाई के क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाए हों लेकिन उन्होंने खेलों के माध्यम से पूरे विश्व में अपनी एक अलग पहचान बनाई है।
 
खेलों से न केवल आत्मविश्वास में वृद्धि होती है बल्कि खेलों से ही अनुशासन, सहनशीलता और धैर्य जैसे गुणों का विकास होता है। इसलिए हमें इस बात को प्रमुखता से समझना होगा कि जीवन में खेल का उतना ही महत्व है जितना अध्ययन करना। बचपन से ही बच्चों में खेलों के प्रति लगाव पैदा करने की आवश्यकता है जिससे वे भविष्य में उसके सामने आने वाली चुनौतियोंं का बेहतर तरीके से सामना कर सकें ।
 
1. क्या आप भी मानते हैं कि खेल मनुष्य के जीवन का मूल आधार है?
 
2. क्या आज की पीढ़ी को मोबाइल, टीवी व इंटरनेट के बजाय खेल के मैदान की तरफ आकर्षित करने की आवश्यकता है?
 
हृदय की कलम से
 
आपका 
धनंजय सिंह खींवसर