रविवार का सदुपयोग
साप्ताहिक सूक्ष्म ब्लॉग | संवाद से परिवर्तन का प्रयास
अंश-छियासीवाँ
सभी की भागीदारी से मजबूत होगा देश का “लोकतंत्र”
लोकतंत्र में जन सहभागिता के लिए अत्यंत आवश्यक है “मताधिकार का प्रयोग”, भारत में 18 वर्ष उससे अधिक का हर नागरिक अपने मताधिकार का प्रयोग करके राज्यों एवं देश में अपनी सरकार चुनता है। भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश हैं जहां लोकतांत्रिक परंपराएं बड़े सम्मान के साथ निभाई जाती रही हैं। हमारे पड़ोसी देशों में और दुनिया के दूसरे देशों में लोकतंत्र या तो खत्म हो चुका है या अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है लेकिन हमने अपनी समृद्ध राजनीतिक सोच के जरिए लोकतंत्र को जीवंत बनाए रखा है।
मताधिकार भारत लोगों की राजनीतिक चेतना की सशक्त अभिव्यक्ति है और यह सही मायने में लोकतंत्र को गहन एवं व्यापक अर्थ प्रदान करती है। सारी दुनिया बड़े आश्चर्य से हमारी इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया की साक्षी बनती है और मुक्त कंठ से सराहना भी करती है।
लोकतंत्र के सबसे बड़े महापर्व की रणभेरी बज चुकी है और पहले चरण के लोकसभा चुनाव संपन्न हो चुके हैं, लेकिन पहले चरण में मतदान को लेकर मतदाताओं की उदासीनता ने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया है। देश में इस बार हो रहे लोकसभा के चुनाव अगले 30 वर्षों के लिए देश के विकास की दिशा और दशा तय करने वाले हैं। विकसित भारत बनाने की इस विकास यात्रा में हम सभी की भागीदारी आवश्यक है और इसी भागीदारी से हमारा लोकतंत्र मजबूत होगा।
भारत देश विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और लोकतांत्रिक प्रणाली में सबसे बड़ी विशेषता यही है कि चाहे कितना ही बड़ा नेता हो, उसे जनता की अदालत में आना ही पड़ता है। हर पांच वर्षों बाद चुनाव होते हैं और चुनाव में सभी पार्टियों के प्रत्याशी अपने-अपने विजन को लेकर चुनावी मैदान उतरते हैं और जनता के समक्ष अपनी बात रखते हैं। जनता उसके आधार पर अपना जन प्रतिनिधि चुनती है।
भारतीय संविधान में प्रत्येक व्यक्ति को एक मत देने का अधिकार दिया है। बड़े से बड़ा पूंजीपति भी अपना एक ही मत दे सकता है और छोटे से छोटा गरीब व्यक्ति भी पूरे अधिकार के साथ एक मत दे सकता है। ऐसे में जब सरकार चुनी जाती है तो ऐसा माना जाता है कि इस सरकार को चुनने में सभी ने अपनी भागीदारी निभाई है लेकिन कम मतदान का प्रतिशत कहीं ना कहीं लोकतंत्र के प्रति आमजन की कम गंभीरता को दर्शाता है।
पिछले कुछ समय में मतदान के दिवस को अवकाश दिवस के रूप में मनाने का चलन चल पड़ा है। आमजन यह सोचता है कि यदि मैं अपना एक मत नहीं दूंगा तो इससे क्या फर्क पड़ने वाला है, लेकिन शायद वह यह बात नहीं जानता है कि लोकतांत्रिक प्रणाली में एक मत पूरी तस्वीर को बदल सकता है। हमने कुछ वर्षों पहले देखा था कि देश में जब अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार थी तो महज एक वोट के कारण उनकी सरकार गिर गई, हालांकि उस समय भारतीय जनता पार्टी के अन्य नेताओं ने वाजपेयी जी से कहा कि वह एक मत की व्यवस्था कर सकते हैं, लेकिन उन्होंने अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। उन्होंने कहा कि मैं ऐसे लोगों से सरकार बनाने की भीख नहीं मांगूंगा और एक बार फिर जनता के बीच जाऊंगा। उनका यह निर्णय सही साबित हुआ और देश की जनता ने एक मजबूत जनादेश दिया और वाजपेयी जी ने एक बार फिर देश में सरकार बनाई। ऐसे कई उदाहरण देश के राजनीतिक इतिहास में मौजूद है जब हमने देखा कि एक वोट की अहमियत को जाना है।
लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए सभी लोगों की इसमें भागीदारी होना अति आवश्यक है, इसलिए इसमें अधिक से अधिक भागीदारी सुरक्षित करना हम सभी का कर्तव्य है।
‘कोऊ नृप होऊ, हमें का हानि’ यानी सरकार कोई भी चलाएं हमें क्या फर्क पड़ता है? इस मानसिकता को छोड़ना होगा। सरकार द्वारा चलाई गई नीतियों और किए गए कार्यकल्पों का असर देश के हर नागरिक पर पड़ता है और इसीलिए लोकतंत्र के इस महान अनुष्ठान को हल्के में नहीं लेना चाहिए। यदि हम आज सरकार चुनने का मौका गंवा देते हैं तो हो सकता है हमें इसका गंभीर खामियाजा भुगतना पड़े।
राजनीतिक शब्दावली में इसे ‘मतदाता की उदासीनता’ का नाम दिया जाता है। मतदान के प्रति मतदाता की यह उदासीनता लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है। जब हम वोट नहीं देते तो हमें सरकार की शिकायत करने का अधिकार भी नहीं है, जिन्हें हम चुन कर लोकसभा में भेजते हैं उनसे प्रश्न पूछने का अधिकार हमें तभी प्राप्त होता है जब हम लोकतंत्र के इस महायज्ञ में अपनी मत रूपी आहुति देते हैं। इसीलिए यहां सिर्फ व्यक्ति विशेष के कल्याण का प्रश्न नहीं है यह आपके गांव, आपके शहर, आपके राज्य और आपके देश के बेहतरी के लिए है, हमारे देश की बेहतरी के लिए है। 24 घंटे के दिन में कुछ मिनट अगर हम मतदान को समर्पित करते हैं तो एक जिम्मेदार नागरिक होने का दायित्व सही मायने में निभा पाते हैं।
आगामी 26 अप्रैल को देश में दूसरे चरण के चुनाव होने हैं, प्रदेश की 13 सीटों पर भी मतदान होना है। मुझे पूरा विश्वास है कि इस बार जिन लोकसभा क्षेत्र के चुनाव होंगे उसमें वहां के मतदाता पूरे उत्साह और जोश के साथ अपने मताधिकार का प्रयोग करते हुए देश में एक मजबूत और सशक्त नेतृत्व वाली सरकार चुनने में अपनी सक्रिय भूमिका का निर्वहन करेंगे। यदि हम छोटी-छोटी समस्याओं एवं विपदाओ के चलते मतदान बूथ तक नहीं पहुंचेंगे तो हो सकता है कि देश में एक ऐसी सरकार बने जो ना तो देश के हित में हो ना ही आम जन के हित में। लेकिन उन परिस्थितियों में हमें शायद यह कहने का भी अधिकार नहीं होगा कि सरकार के निर्णय जन विरोधी या राष्ट्र विरोधी है क्योंकि हमने लोकतंत्र के इस सबसे बड़े महापूर्व में अपनी भागीदारी नहीं निभाई। इसलिए हमें गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है।
मताधिकार एक नागरिक के लिए गर्व का विषय है और इस राजनीतिक अधिकार का प्रयोग अपनी शक्ति और क्षमता के प्रदर्शन के लिए किया ही जाना चाहिए। हम सही मायने में लोकतंत्र को साकार करना चाहते हैं तो हमें आगे बढ़कर अपने नेता का चुनाव करना चाहिए। यदि हम ऐसा करते हैं तो गर्व से कह सकते हैं कि हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नागरिक हैं।
देश के विकास की सुंदर तस्वीर में रंग भरे,
अपने मताधिकार का प्रयोग जरूर करें।
1. क्या आप मानते है विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में कम भागीदारी के दूरगामी परिमाण बुरे हो सकते है?
2. क्या आप मानते है लोकतंत्र सबकी भागीदारी से मजबूत होगा?
हृदय की कलम से।
आपका
धनंजय सिंह खींवसर