रविवार का सदुपयोग
साप्ताहिक सूक्ष्म ब्लॉग | संवाद से परिवर्तन का प्रयास
अंश- अट्ठानबेवाँ
25 जून 1975
संविधान हत्या दिवस
याद था…..याद है……
और अब सदा याद रहेगा….
जिस दिन हुआ
संविधान की आत्मा पर वार …
जिस दिन हुआ
लोकतंत्र पर वार……
जिस दिन
छीन लिए लोगों के अधिकार….
जिस दिन
मीडिया को बनाया गया लाचार….
जिस दिन
विपक्ष को जबरदस्ती किया गया कैद ….
जिस दिन
तानाशाही को बताया गया वैध…
वह दिन था 25 जून, 1975
“संविधान हत्या दिवस : आपातकाल का भयावह मंजर अब कभी नहीं दोहराया जाएगा” यह भारतीय लोकतंत्र पर सबसे काला धब्बा था।
संविधान को लोकतंत्र की आत्मा कहा गया है और ठीक 50 वर्ष पहले 25 जून 1975 को इतिहास को कलंकित करने वाला दिन था जब सत्ता के मद में डूबी कांग्रेस की मुखिया तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी ने सत्ता बार काबिज रहने के लिए देश में आपातकाल लगाने का तुगलकी फरमान जारी कर दिया 21 महीने तक भारत में आपातकाल (इमर्जेन्सी) लगा रहा। केंद्र सरकार के हालिया निर्णय के अनुसार 25 जून के इस काले दिन को “संविधान हत्या दिवस” मनाया जाएगा जो देशवासियों को याद दिलाएगा कि संविधान के कुचले जाने के बाद देश को कैसे-कैसे हालात से गुजरना पड़ा था। यह दिन उन सभी लोगों को नमन करने का भी है, जिन्होंने आपातकाल की घोर पीड़ा झेली। देश कांग्रेस के इस दमनकारी कदम को भारतीय इतिहास के काले अध्याय के रूप में हमेशा याद रखेगा।
तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की अनुच्छेद 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा की थी। आपातकाल की घोषणा के लिए जो कारण दिया गया था वह था- ‘देश को आन्तरिक व वाह्य सुरक्षा सम्बन्धी चुनौतियाँ’। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल था। आपातकाल की इस घोषणा के द्वारा प्रधानमन्त्री को यह अधिकार मिल गया कि वह मनमाने तरीके से नियम बनाकर उनसे देश को चलायें। चुनाव निरस्त कर दिये गये। नागरिकों के मूल अधिकार छीन लिये गये। इन्दिरा गांधी के लगभग सभी राजनैतिक विरोधियों को जेल में डाल दिया गया। प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। संजय गांधी ने इसी समय बड़े पैमाने पर लोगों की नसबन्दी करायी।
जयप्रकाश नारायण ने इसे ‘भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काला काल’ कहा था और अब माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने घोषणा की है कि हर वर्ष 25 जून ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा। आप सोच रहे होंगे कि आखिर देश में ऐसे क्या हालत उत्पन्न हो गए कि देश के लोकतंत्र का गला घोंटते हुए आपातकाल लागू कर दिया गया तो मैं आपको बताना चाहूंगा कि यह सब हुआ 1975 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस फ़ैसले के बाद, जिसमें 12 जून 1975 को इंदिरा गांधी को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने दोषी पाया और छह साल के लिए पद से बेदखल कर दिया। इंदिरा गांधी पर वोटरों को घूस देना, सरकारी मशीनरी का गलत इस्तेमाल, सरकारी संसाधनों का गलत इस्तेमाल जैसे 14 संगीन आरोप सिद्ध हुए लेकिन सत्ता के नशे में चूर इंदिरा गांधी ने उन्हें स्वीकार न करके न्यायपालिका का उपहास किया, लेकिन आज संविधान बचाने का राग अलापने वाली कांग्रेस की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश की न्यायपालिका का अपमान करते हुए इस आदेश को मानने से इनकार कर दिया।
25 जून 1975 को जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा के न चाहते हुए भी इस्तीफा देने तक देश भर में रोज प्रदर्शन करने का आह्वान किया जिसके बाद 25 जून 1975 को ही राष्ट्रपति के अध्यादेश पास करने के बाद सरकार ने आपातकाल लागू कर दिया। जिस संविधान की कॉपी लेकर आज कांग्रेस सहित पूरी विपक्षी पार्टियां हर जगह घूम रही है और यह बता रही है कि संविधान खतरे में है, यह वही कांग्रेस है जिसके राज में इमरजेंसी लागू हुई और भारतीय संविधान के मूलभूत सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ। आपातकाल के दौरान संविधान में कई संशोधन किए गए जो सरकार को अधिक शक्तिशाली और नागरिकों को कम स्वतंत्र बनाते थे।
लोकतंत्र का हनन करते हुए इमरजेंसी के दौरान, नागरिक अधिकारों का उल्लंघन किया गया और स्वतंत्रता को सीमित किया गया। प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया गया, विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार किया गया और राजनीतिक विरोध को दबाया गया।
कई लोग बिना मुकदमे के जेल में डाले गए। इंदिरा गांधी की सरकार ने इस अवधि में कानूनी प्रक्रियाओं का दुरुपयोग किया और अपनी सत्ता को मजबूत करने के लिए कानूनों को मनमाने ढंग से लागू किया। इस अवधि में लागू की गई कई आर्थिक नीतियां देश के विकास को बुरी तरह से प्रभावित करने वाली साबित हुई। व्यवसायों पर सरकारी नियंत्रण बढ़ गया, जिससे देश में आर्थिक मंदी आई। व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आजादी को कुचला गया। सेंसरशिप लागू की गई और विरोध की आवाजों को दबा दिया गया।
इमरजेंसी के खिलाफ देश भर में जनता का व्यापक विरोध हुआ। इमरजेंसी समाप्त होने के बाद 1977 के आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी की भारी पराजय हुई, जो दिखाता है कि इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी सिर्फ और सिर्फ अपने निजी राजनीतिक फायदे के लिए लागू की थी और जनता इससे बहुत नाराज थी। यह सभी कारण बताते हैं कि इमरजेंसी लागू करना लोकतंत्र की हत्या करना था, और इस हत्या का पूरा श्रेय सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस पार्टी और इंदिरा गांधी को जाता है।
प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र मोदी जी ने 25 जून को ” संविधान हत्या दिवस ” के रूप मनाने का जो निर्णय लिया है, निश्चित रूप से यह स्वागत योग्य कदम है। देश की युवा पीढ़ी और आने वाली पीढ़ी को इस बात का एहसास होना चाहिए कि किस तरह से सत्ता के लालच में कुछ लोगों ने देश के संविधान को खत्म करने का प्रयास किया। सरकार की इस तानाशाही के बावजूद तत्कालीन देशभक्तों ने पूरी मजबूती के साथ देश के संविधान को बचाने की लड़ाई लड़ी और उन्हीं की कुर्बानियों का नतीजा है कि आज देश में लोकतंत्र कायम है और संविधान की गरिमा बनी हुई है।
आइए, इस अवसर पर हम सब यह संकल्प लें कि हम हमेशा संविधान को पवित्र ग्रंथ के रूप में मानते हुए उसका पालन करेंगे। उसमें दिए गए अधिकारों को प्राप्त करने के साथ ही संविधान में लिखित मौलिक कर्तव्यों का भी पूरी निष्ठा के साथ निर्वहन करेंगे, ताकि हम सभी मिलकर 2047 में एक विकसित और मजबूत राष्ट्र का निर्माण कर सके।
1. क्या आपका मानना है कि किसी भी पार्टी को सत्ता में रहते हुए संविधान को सर्वोपरि मानकर शासन करना चाहिए?
2. क्या आप यह मानते हैं कि किसी भी लोकतांत्रिक सरकार को संविधान से खिलवाड़ का अधिकार नहीं होना चाहिए?
जय हिंद
हृदय की कलम से
आपका
धनंजय सिंह खींवसर