इससे सभी का सरोकार होना चाहिए
मित्रों,
मेरा मानना है कि युवा मस्तिष्क सादे किरमिच (कैनवास) की तरह होता है, वे सभी एक जैसे होते हैं, वे दिशा या देश के कारण से एक दूसरे से भिन्न हो जाते हैं। यदा-कदा हमारे समाज को केवल नए, युवा मस्तिष्क के योगदान की जरूरत पड़ती है ताकि राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्थाएं व निकाय बेहतरीन तरीके से कार्य कर पाएं। मूल तत्व यह है कि भारत की राजनीतिक व्यवस्था में इन लोगों का प्रभुत्व है और ऐसे लोगों का नेतृत्व व्याप्त है जिसकी औसत आयु 60 वर्ष के आस पास है। निश्चित तौर पर राजनीतिक व्यवस्था को संरचनाबद्ध करने में अनुभव और प्रजा की बड़ी भूमि होती है किन्तु राजजीति को नई दिशा और नवीन परिप्रेक्ष्य देने के लिए युवा और उत्कृट व्यक्तियों का प्रवेश भी उतना की महत्वपूर्ण है।
मैं आपको इस तथ्य से अवगत करा दूँ कि हमारे देश में यह क्षमता है कि आने वाले वर्षों में यह वैश्विक महाशक्ति के रूप में विकसित हो जाए। भारत दुनिया के सबसे अधिक युवा नागरिकों का देश है जहां कि एक तिहाई आबादी 24 वर्ष की आयु से कम ही है। हमारे देश के हित में यह कार्ड सबसे अधिक उत्कृट हो सकता है क्योंकि मेरा मानना है कि युवा वर्ग राष्ट्र में सकारात्मक बदलाव लाने में बहुत अधिक सहायक हो सकता है। वर्ष 2014 के सामान्य निर्वाचन में वांछित शासन के लिए और परिवर्तन लाने के लिए युवाओं में मतदान करने का उत्साह दिखाई दिया जहां लगभग 10 करोड़ युवा ऐसे थे जो पहली बार अपना मतदान करने के लिए मतदान केन्द्र आए। इस उदाहरण में युवा वर्ग में राष्ट्र को उन लोगों के हाथों में सौंपने का अटूट उत्साह दिखाई दिया जो राष्ट्र को अपनी सुदृढ़ शासन व्यवस्था के बल पर प्र्रगति की दिशा में ले जाएं। जब हम उस विशाल क्षमता का जश्न मनाते है कि इस पर हमारे देश को गर्व है, वहीं हमें अपनी क्षमता का पूर्णतः देहन करना शेष है। हमें विगत काल में देश को हुई क्षति की भरपाई करनी है साथ ही यह महसूस करना है कि अपने युवकों के उत्साह का सदुपयोग करते हुए गौरवपूर्ण तरीके से इससे निकालकर उपर उठने की संभावना प्रबल है।
मैं आपको आजादी के 60 वर्ष के बाद भी देश के समक्ष मुख्य बाधाओं से रूबरू करा दूँ। पिछले कई वर्षों में चलाई गई अनेक योजनाओं और कार्यक्रमों के बावजूद भारत की 1/5 भाग से अधिक आबादी अत्यंत गरीबी में गुजर-बसर करती है। विश्व स्तर पर कुपोषित बालक-बालिकाओं के मामले में विश्व के एक-तिहाई कुपोषित बच्चे भारत में हैं। भारत में हर चौथा आदमी निरक्षर है और यूनेस्को की एक रिपोर्ट के अनुसार लगभग 264 मिलियन भारतीय को शिक्षा का साधन उपलब्ध नहीं है। हमारे पास जनसंख्या की अधिक गणना होने के बाद भी हम वैश्विक महाशक्तियां जैसे कि सं. रा. अमेरिका, चीन और आस्ट्रेलिया से खेल के क्षेत्र में बहुत पीछे हैं। हमारी बुनियादी संरचना में भी बहुत गिरावट है जहां हमें स्वच्छ जल, सफाई, आवास इत्यादि जैसी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। ये ऐसे क्षेत्र हैं जिस दिशा में संभवतः हम अपने युवकों के जोश और उत्साह के सहारे काम कर सकते हैं।
हमारे लिए तुरूप का पत्ता (ट्रम्प कार्ड) हमारा युवा वर्ग अर्थव्यवस्था की जमीनी हकीकत को समझता है और वे अधिक प्रभावी ढ़ंग से हमारी व्यवस्था के विकास में योगदान दे सकते हैं। चूंकि हमारे दैनिक जीवन में इन विषयों का निपटान व्यक्ति-निष्ठ होकर किया जाता है, मेरी समझ से, उत्तम परिणाम के लिए परिवर्तन लाने हेतु नवीन और स्पष्ट संदर्श अपनाना आवश्यक है।
मेरा मानना है कि हमारा युवा वर्ग हमारे राष्ट्र के विकास में योगदान देने में बहुत अधिक सक्षम है और यह सही समय है कि हम उन्हें ऐसा करने के लिए सम्यक कौशल और उचित मार्ग दर्शन प्रदान करें। मेरा यह भी मानना है कि केवल युवा सशक्तीकरण की मांग करना पर्याप्त नहीं है, हमें अपने युवकों में निवेश करने के साथ-साथ उन्हें राष्ट्र की प्रगति और विकास की दिशा में कार्य आरंभ करने के लिए प्रोत्साहित करने की भी आवश्यकता है। व्यक्तियों द्वारा जवाबदेही और दायित्व लेने के कारण बहुत से बदलाव आते हैं और उचित समय आ गया है कि हम अपने युवा वर्ग के दिलो दिमाग में यह भावना प्रेषित करें।
जॉन एफ. केनेडी ने एक बार प्रसिद्ध वाक्य कहा था, “यह मत पूछो कि आपका देश आपके लिए क्या कर सकता है, यह पूछो कि आप देश के लिए क्या कर सकते हो।” अब समय आ गया है कि हम इस पदबंध से हृदयांगम करें।
यदि हम इसे करीबी से देखें तो हमें अपने माननीय प्रधानमंत्री से बहुत कुछ सीखने को मिल सकता है, श्री नेरन्द्र मोदीजी ने अपने जीवन में, अल्पायु में ही अपनी वृत्तिका (करियर) का शुभारंभ किया था। वे 1970 के आरंभिक दशक में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े और परवर्ती काल में सन् 1987 में भाजपा में शामिल हुए। एक वर्ष बाद वे गुजरात संबंध (विंग) के महासचिव बने और अंततः पार्टी में कई महत्त्वपूर्ण पदों को सुशोभित करते हुए वर्ष 2014 में भारत के प्रधानमंत्री पद का कार्यभार संभाला। यह उनकी दृढ़ और अटूट इच्छाशक्ति थी कि राष्ट्र के लिए कुछ सार्थक कार्य करना है जिसके कारण उनके व्यक्तित्व में आमूलचूर्ण व अभूतपूर्व उत्परिवर्तन आया और प्रत्येक व्यक्ति को इसकी सराहना करनी चाहिए। इसी तरह, मेरा मानना है कि प्रत्येक युवक जो समाज में बदलाव लाना चाहता है उसे मौलिक शक्ति विकसित कर अपने प्रारंभिक वर्षों के अनुभव का संचय करने की दिशा में प्रवृत्त होना चाहिए।
मेरे युवा मित्रों को मेरी सलाह है कि जिस तरह लोग अपनी व्यक्तिगत समस्याओं को समझते हैं, उसी प्रकार हमें बहुत जरूरी सरोकारों को भी समझकर उनके समाधान का विकल्प ढूंढ़ना चाहिए। हमें अर्थव्यवस्था की गंभीर चिन्ताओं को चिह्नांकित कर सुसंगत समाधान लेकर सामने आना चाहिए।
भविष्य की दिशा में उत्तरोत्तर अग्रसर होने के लिए हमें शिक्षा, अवसंरचना, स्वास्थ्य देखरेख, खेल, उद्यमिता, पर्यटन आदि के क्षेत्र में हमारी आर्थिक संरचरना की कमी की भरपाई करने की आवश्यकता है। नई पीढ़ी के रूप में हमें विपथन को ठीक करने और इन सरोकारों की तह तक जाने की यात्रा आरंभ करनी चाहिए हमें राष्ट्र की तरक्की और विकास के लिए इमानदारी, सत्यनिष्ठा, पारदर्शिता, जवाबदेही और करूणा जैसे महत्त्वपूर्ण मूल्यों का निर्माण करना है। महान नेतृत्व की नीवं बहुत हद तक दायित्व की भावना भी है और युवक होने के नाते हमारे भीतर यह सुस्थापित होना चाहिए।
किसी राजनीतिक दल में शामिल होकर अपनी युवा पीढ़ी को राष्ट्र की विकास यात्रा में योगदान देने के लिए प्रोत्साहित करना चाहता हूँ। मैं युवकों द्वारा देश को बहु-पक्षीय विकास की दिशा में आगे बढ़ाने की पहल में अपना सहयोग देने में मुझे और अधिक प्रसन्नता होगी।
ऐसा पहली बार हुआ है कि भारत में इतनी बड़ी तादाद में राष्ट्र के विकास में युवकों की भागीदारी दिखाई दी है। हम इसी अवसर की कामना करते रहे हैं और यही वह घड़ी है जब हम गर्वित महसूस कर रहे हैं। मैं प्रत्येक युवक-युवती को अपने साथ जुड़ने का न्यौता देता हूँ कि वे आगे आएं और राष्ट्र को विकास की गगनचुंबी सफलता में अपना योगदान दें।
सादर
(धनंजय सिंह खींवसर)