जब तक मारवाड़ के किसान संतुष्ट नहीं होंगे, हमारे क्षेत्र का वास्तविक विकास संभव नहीं है। भारत में हरित क्रांति 1966-67 में हुई जब हमारे किसानों ने कृषि वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में आधुनिक तकनीक अपनाने के लिए पारंपरिक कृषि पद्धतियों को त्याग दिया जिससे उत्पादन में वृद्धि हुई। आज देश को एक और हरित क्रांति की जरूरत है जो हमारे खेतों को के नए समय के साथ बदल देगी। मुझे बहुत दुख होता है जब बेमौसम बारिश के कारण हमारे किसानों की मेहनत बेकार चली जाती है या जब बीमा प्रदाता उपयुक्त मुआवजा देने में विफल हो जाते हैं। हमें इस दुष्चक्र से बाहर आना चाहिए और अपनी कृषि पद्धतियों में स्वतंत्र होना चाहिए। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी भी प्राकृतिक आपदा की स्थिति में हमारे किसानों को मुआवजे के लिए किसी पर निर्भर न रहना पड़े। युवाओं को भी सर्वोत्तम कृषि पद्धतियों को समझने की कोशिश करनी चाहिए जिससे उनके परिवार को जीवन में आगे बढ़ने में मदद मिल सके। मैं आपसे इस मुद्दे पर अपने सुझाव नीचे टिप्पणी के रूप में भेजने का अनुरोध करता हूँ।
– धनंजय सिंह खींवसर