मित्रों, देश को समृद्ध बनाने के लिए, संसाधनों से अधिक, हमें इस उद्देश्य की दिशा में काम करने के लिए दृढ़ संकल्प, ईमानदारी और प्रेरणा की आवश्यकता है। स्वामी विवेकानंद के शब्द इतने वर्षों के बाद भी हमारे लोगों को प्रेरित करते हैं। वे समर्पण और ज्ञान के आदर्श मिश्रण थे। अपनी मातृभूमि की प्रगति के लिए उनकी दृष्टि और सपने ने उन्हें विश्व स्तर पर भारत के बारे में ज्ञान फैलाने के लिए प्रेरित किया।
सन् 1896 में जब वे भारत लौटे तो तट पर पहुँचते ही वे जमीन पर लेट गए और भारत माता का दिव्य आशीर्वाद माँगा। यह लगभग वैसा ही है जैसा कोई बच्चा लंबे समय के अलगाव के बाद अपनी मां की गोद में लौटता है। वे बहुत ही बुद्धिमान व्यक्तित्व के धनी थे। एक बार एक अमेरिकी प्रोफेसर डॉ. राइट ने कहा था, “अगर हम अपने विश्वविद्यालय में सभी लोगों के ज्ञान को एकत्रित कर दें तब जाकर स्वामी जी की बुद्धिमता वाला दूसरा व्यक्ति मिल पायेगा।”
आज, उनकी जयंती पर, मैं राजस्थान के लोगों से अपने पूरे मन, आत्मा और संसाधनों के साथ एक शक्तिशाली ऊर्जा के रूप में एकजुट होने और भारत माता की प्रगति के लिए अपने अथक प्रयासों का संकल्प लेने का आग्रह करता हूँ। स्वामी विवेकानंद का सही मायने में सम्मान करने का यही एकमात्र तरीका है
– धनंजय सिंह खींवसर